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शक्ति का केन्द्र विन्दु हैं । ऐसा अनुशासन होता है, कि हजारों सैनिक मौत के मोर्चे पर लड़ते हैं, और अपनी जान तक लड़ा देते हैं। क्या मजाल कि कोई इधर से उधर हो जाए।
___ सेना पर सेनापति का जैसा अनुशासन होता है, वैसा ही नियंत्रण जिसका अपने मन पर है, विचारों और इच्छाओं पर है, वह साधक अपने जीवन में कभी पराजित नहीं हो सकता । उसकी कभी हार नहीं हो सकती।
. साधना का एक ही मार्ग है, कि हम अपनी इन्द्रिय, मन और शरीर को आत्मा के केन्द्र पर ले आएं, अपने समस्त व्यापारों को आत्मा में ही केन्द्रीभूत कर लें।
इस प्रकार जब आत्मा की समस्त शक्तियाँ केन्द्रित हो जाती हैं, तब ब्रह्मचर्य की शक्ति बढ़ जाती है, और यह केन्द्रीकरण जितना-जितना मजबूत होता जाता है, ब्रह्मचर्य की शक्ति में अभिवृद्धि होती. चली जाती है।
भूख लगेगी तो शरीर को भोजन देंगे, किन्तु मन जो माँगेगा वह नहीं देंगे। वही दिया जाएगा, जो हम चाहते हैं । आँख, कान, नाक आदि अपना-अपना कार्य करते हैं, किन्तु उनका चाहा नहीं होगा, जो हम चाहेंगे वही होगा।
जब साधक अपने जीवन पर, अपनी इन्द्रियों पर, अपने शरीर और मन पर ठीक रूप में अधिकार कर लेता है, तब आत्मा में राग और द्वेष की परिणति कम हो जाती है और राग-द्वेष की परिणति जितनी-जितनी कम होती जाएगी, उतना-उतना ही ब्रह्मचर्य का विकास होता जाएगा।
इस प्रकार ब्रह्मचर्य की साधना अन्दर और बाहर दोनों क्षेत्रों में चलती है । वह अकेले आत्मा में या अकेले शरीर में ही नहीं चलती है । यद्यपि शरीर पर ब्रह्मचर्य का प्रभाव पड़ता है और इतना सुन्दर पड़ता है, कि उसे वाणी के द्वारा व्यक्त करना कठिन है । जो सदाचारी माता-पिता की सन्तान है, वह इतना सुदृढ़ एवं सुगठित होता है कि संसार की चोटों से तनिक भी नहीं घबराता । किन्तु इसके विपरीत लम्पट माता-पिता की सन्तान दुःखों की चोटों से काँपने लगती है । छोटे-छोटे बच्चे, जिनकी जिन्दगियाँ अभी पनप ही रही हैं, जब दिल की धड़कन की बीमारी से तंग आ जाते हैं, निस्तेज एवं निष्प्राण से हो जाते हैं, तब मालूम होता है, कि माता-पिता ने भूल की है। इसी कारण उनका शरीर बचपन में ही जर-जर होता जा रहा है। जब अधिष्ठान ही दुर्बल है, तो उसका अधिष्ठाता बलवान् कैसे होगा? दुर्बल और निःसत्त्व शरीर में सबल और सत्त्वशाली आत्मा का निवास किस प्रकार हो सकता है ?
आप इस बात पर विचार करें, कि जैनधर्म में जब मोक्ष-प्राप्ति की योग्यता पर विचार किया गया, तब जहाँ आध्यात्मिक शक्ति की सबलता पर जोर दिया गया, वहाँ शारीरिक शक्ति को भी महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
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