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________________ ५३ शक्ति का केन्द्र-बिन्नु सवार को न जाने किधर ले जाता है। उसने सवार पर ही अपना नियंत्रण कर रखा है, लाखों में कोई एक ऐसा वीर साधक निकलता है, जो मन पर सवार होता है, मन के घोड़े को अपने अभीष्ट नियंत्रण में रखता है । कभी-कभी ऐसा होता है, कि जब बहुत बड़ी सभा होती है, हजारों आदमी इकट्ठे होते हैं, और सभा-पति के गले में फूलों की मालाएँ डालकर उसे कुर्सी पर बिठा देते हैं, तब उसकी अंग-भंगी को देखो, तो मालूम होगा, कि उस पर अहंकार सवार हो गया है । जब यह दृश्य देखने को मिलता है, तब प्रत्यक्ष में तो यह मालूम होता है, कि वह कुर्सी पर बैठा है, किन्तु वास्तव में कुर्सी ही उस पर बैठ गई है। जीवन की यह कैसी विडम्बना है ! जब ये विकार आते हैं, तब मालूम होता है, कि जीवन का नाटक कितना विचित्र है ! देखते हैं, कोई घोड़े पर सवार है, पर देखना है, कि घोड़ा ही तो कहीं उस पर सवार नहीं हो गया है ? जो कार पर बैठा है, कहीं कार ही तो उस पर नहीं चढ़ बैठी है ? कपड़ों ने तो हमें नहीं पहन लिया है ? और हम समाज में यश और प्रतिष्ठा पैदा करते हैं किन्तु कहीं उन्होंने तो हमें नहीं पकड़ लिया है ? सचमुच संसार में पकड़ की कुछ ऐसी विचित्रं बातें हैं, कि हम आश्चर्य-मुग्ध हो जाते हैं । - एक गुरु था, और उसका एक था चेला। प्रभात की लाली में दोनों चले जाया करते थे नदी पर स्नान करने । एक दिन बहुत सबेरे ही नदी-किनारे पहुँचे तो कुछ साफ नजर नहीं आता था। जब शिष्य और गुरू दोनों नदी में स्नान करने लगे, तब अचानक गुरू की दृष्टि एक काली चीज पर पड़ी। वह दूर नदी की धारा में बहती हुई जा रही थी। गुरु ने शिष्य से कहा-देख, वह कम्बल बहा जा रहा है, किसी का बह गया है, तू उसे पकड़ ला । शिष्य ने कहा-महाराज, मुझसे तो वह नहीं पकड़ा जाएगा। गुरू ने फटकारा-तू इतना हट्टा-कट्टा है, पर एक बहता कम्बल भी नहीं पकड़ा जाता। अच्छा मैं ही जाता हूँ। गुरू ने छलांग लगाई, और उसे पकड़ा, तो वह कम्बल नहीं, एक रीछ था । गुरु ने ज्यों ही उसे पकड़ा, कि उसने गुरु ही को कस कर पकड़ लिया। __ अब गुरु अपना पिण्ड छुड़ाने की कोशिश कर रहे हैं, और जल के अन्दर गुत्थम-गुत्था हो रही है। चेले को कुछ स्पष्ट दीख नहीं रहा था। देर हो गई, तो उसने आवाज दीगुरु जी, यदि कम्बल नहीं पकड़ा जाता है, तो छोड़ दो, रहने भी दो ! कम्बल कहीं और माँग लेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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