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ब्रह्मचर्य-दर्शन
कोई जीव नरक में गया। उसने जो नारक का रूप लिया है, तो वह आत्मा का शुद्ध पर्याय है या अशुद्ध पर्याय ? वह कर्म-निमित्त से नारक बना है, पुद्गल के संसर्ग से बना है, इसलिए अशुद्ध पर्याय है। इसी प्रकार देव, मनुष्य और तिर्यञ्च आदि पर्याय भी आत्मा के अशुद्ध पर्याय हैं ।।
___इसी प्रकार क्रोध, मान, माया और लोभ भी अशुद्ध पर्याय हैं । किं बहुना, जितने भी औदयिक-भाव आत्मा में उत्पन्न होते हैं, वे सब अशुद्ध पर्याय हैं । वे आत्मा के निज-पर्याय नहीं हैं; क्योंकि उनकी उत्पत्ति जड़ कर्मों के निमित्त से होती है।
कोई मनुष्य क्रोध करता है । हम जानते हैं, कि जड़ में क्रोध उत्पन्न नहीं होता, चेतन आत्मा में ही होता है । पर, क्रोध यदि आत्मा का स्वाभाविक गुण होता, तो मुक्त-दशा में भी उसकी सत्ता रहनी चाहिए थी । यही नहीं, मुक्त-दशा में तो स्वाभाविक गुणों का परिपूर्ण विकास होता है, अतएव वहाँ क्रोध का भी पूर्ण विकास होना चाहिए था । परन्तु ऐसा नहीं है। क्रोध और दूसरे कषाय भी, कर्म के संयोग से आत्मा में उत्पन्न होते हैं । अतः आत्मा में उत्पन्न होने पर भी उन्हें आत्मा का शुद्ध पर्याय नहीं कह सकते ।
हमारी स्थिति क्या है ? मनुष्य जब तक संसार में है और संसार की भूमिका में रह रहा है, तब तक उसे हम न एकान्ततः शुद्ध कहेंगे और न अशुद्ध । उसमें शुद्ध पर्याय भी हैं और अशुद्ध पर्याय भी हैं ।
मनुष्य का जीवन अपने आप में अशुद्ध पर्याय है । जड़ और चेतन, दोनों के विकार से मानव-शरीर और मानव-जीवन बना है। एक ओर कर्म हैं, शरीर है, इन्द्रियां हैं और मन है और दूसरी ओर उसकी अपनी आत्मा है। दोनों का मिलकर हमारे सामने एक पिण्ड खड़ा है । उसकी उपमा दी गई है, कि लोहे का एक गोला आग में पड़ा है । धीरे-धीरे जब लोहे का गोला आग की गरमी ले लेता है, और उस के कण-कण में आग समा जाती है, तब उसका कोई भाग ऐसा बाकी नहीं रहता, जिसमें लोहा और आग-दोनों न हों। जहाँ लोहा है, वहीं अग्नि है और जहाँ अग्नि है, वहीं लोहा है। ___ लोहे के गोले की यह जो स्थिति है, वही मनुष्य जीवन की स्थिति है । एक ओर तो हमारा शरीर है, पिण्ड है, दूसरी ओर उसके अणु-अणु में आत्मा अग्नि की तरह व्याप्त है । कोई जगह खाली नहीं, जहाँ आत्मा न हो, और कोई जगह ऐसी नहीं, जहाँ आत्मा तो हो, पर शरीर न हो।
सर्वत्र यही विधान है । इसका विश्लेषण करना ही साधक का अपना काम है। भेद-विज्ञान साधक-जीवन की विशेष साधना है।
एक वैज्ञानिक के सामने जब तपा हुआ गोला आ जाता है, तब वह विश्लेषण करता है, कि यह लोहा है और यह अग्नि है । दो चीजें सामने आती हैं, तो विश्ले
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