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________________ अन्तद्वन्द्व ४५ ब्रह्मचर्य की आग, वह आग है, जिसमें तप कर आत्मा कुन्दन बन जाती है । उस आग में अनन्त अनन्त काल से आत्मा के साथ चिपटा हुआ कर्म- मल जल कर भस्म हो जाता है । इस प्रकार ब्रह्मचर्य की साधना मनुष्य के जीवन को, जिसमें शरीर और आत्मादोनों का समावेश है, शक्तिशाली बनाने वाली है । ब्रह्मचर्य की बूटी की यह एक बड़ी विशेषता है | अहिंसा और सत्य आदि की आध्यात्मिक बूटियाँ आत्मा की शक्ति को बढ़ाती हैं और संसार की दूसरी भौतिक बूटियाँ इस शरीर को मजबूत बनाती हैं, परन्तु ब्रह्मचर्य की यह बूटी, एक साथ दोनों को अपरिमित बल प्रदान करती है । इसी कारण ब्रह्मचर्य उत्तम तप माना गया है । तवेसु वा उत्तम बम्हचेरं । जो भाग्यशाली इस तप का अनुष्ठान करते हैं, वे अपने जीवन को पावन, पवित्र और मंगलमय बना लेते हैं । व्यावर, ५-११-५० । } त्याग का आरम्भ सबसे निकट और सबसे प्रिय वस्तुनों से करना चाहिए। जिसका त्याग करना परमावश्यक हैवह है मिथ्या अहंकार, अर्थात् - मैं यह कर रहा हूँ' -यही भाव हमारे अन्दर मिथ्याभिमान को उत्पन्न करता है - इसको त्याग देना होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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