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________________ ब्रह्मचर्य - वर्शन क्या हैं ? भगवान् महावीर के ज्ञान का जो अलौकिक प्रकाश हमें उपलब्ध है, उसमें आप अपने आन्तरिक जीवन का परीक्षण कर सकते हैं । ४४ इसी प्रकाश में गृहपति आनन्द के जीवन को देखिए। वह भगवान महावीर के श्री चरणों में ब्रह्मचर्य व्रत ले रहा है; कि संसार में अपनी पत्नी के सिवाय, जितनी भी स्त्रियाँ हैं, उनके प्रति मैं माता और बहिन का पवित्र प्रेम स्थापित करता हूँ । संसार में जो करोड़ों नारियाँ हैं; वे सब मेरी माताएँ और बहिनें होंगी और मैं होऊँगा उनका निर्मल हृदय सच्चा भाई । जब जीवन में इतना ऊंचा आदर्श आता है, तब अपने आप बुरी वृत्तियों के पैर उखड़ने लगते हैं । संसार की वासनाएँ अनादिकाल से जीवन में घर किए हुए हैं, उनके कारण जीवन निरन्तर गिरता चला जा रहा है और इतना अधिक गिरता जा रहा है, कि संभल नहीं रहा है । किन्तु सद्वृत्तियों के जागृत होने पर वही जीवन कर्तव्य के मोर्चे पर तनकर खड़ा हो जाता है। यदि जीवन में एक भी ऊँचाई तनकर खड़ी हो जाती है, और बुराइयों को ललकारती है, तो बुराइयां, आज नहीं तो कल, ज़रूर मैदान खाली करके भाग जाती हैं । ब्रह्मचर्य में एक अद्भुत शक्ति है । आखिर हमारा वर्तमान जीवन क्या है क्या हैं ? भारतीय दर्शन का उत्तर है, कि आज हैं । हमारे वर्तमान जीवन के दो रूप हैं-न वह यह दृश्य देह - पिण्ड, जो हमारे पास है, जड़ और चेतन दोनों का सम्मिश्रण है । ? मैं आपसे ही पूछता हूँ कि आप आप आत्मा भी हैं और शरीर भी शुद्ध चेतन है, न केवल जड़ । मनुष्य को वर्तमान कलुषित - जीवन का मैदान पार करना है, और पवित्रता के अन्तिम सर्वातिशायी बिन्दु पर पहुंचना है । आज की दृष्टि से न केवल आत्मा को और न केवल शरीर को ही लेकर हम आगे बढ़ सकते हैं । प्रत्युत दोनों को मज़बूत बना कर ही, हम अपना मार्ग तय कर सकते हैं । मगर दोनों को मज़बूत बनाने का उपाय क्या है ? मैं समझता हूँ, कि वह उपाय ब्रह्मचर्य ही है, उसके अतिरिक्त और कुछ नहीं है । ब्रह्मचर्य में अमित शक्ति है । उसकी शक्ति हमारे मन को मज़बूत बनाती है, हमारी अन्तरात्मा को शक्तिशाली बनाती है, और हमारे तन को भी मज़बूत करती है । मनुष्य का तन, मन और आत्मा जब सब कुछ मज़बूत हो जाता है, तब उसमें ऐसी प्रचण्ड शक्ति का, ऐसे अपूर्व और देदीप्यमान तेज का और ऐसी अद्भुत क्षमता का आविर्भाव होता है, कि वह अपने जीवन में एकदम अप्रतिहत हो जाता है । बाहर की और कोई भी माया शक्ति, उसके मार्ग में रोड़ा बन कर खड़ी नहीं हो सकती ।. भीतर की, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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