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ब्रह्मचर्य - दर्शन
लिए गाय के दूध और आक के दूध का उदाहरण उपयुक्त है। गाय का दूध भी दूध कहलाता है और आक का दूध भी दूध कहलाता है । दोनों दूध कहलाते हैं और दोनों ही सफेद होते हैं । किन्तु दोनों में आकाश-पाताल जितना अन्तर है। एक में अमृत भरा है, और दूसरे में विष छलकता है । आक के दूध की एक-एक बूंद जहर का काम करती है और गाय का अमृतोपम दूध शरीर के कण-कण में बुल और शक्ति का संचार करता है ।
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इसी प्रकार प्रेम और मोह दोनों में आकर्षण है, पर दोनों के आकर्षण में अन्तर है । जब मोह का आकर्षण एक का दूसरे पर चलता है, तब वह दोनों की जिन्दगी को वासना में डाल देता है । जिस किसी के पास वह आकर्षण का प्रवाह जाता है, तो विकार और वासना की विषाक्त लहरें लेकर जाता है। प्रेम का आकर्षण ऐसा नहीं होता । उसमें विकार नहीं होता । वासना भी नहीं होती । प्रेम अपने आपमें विशुद्ध होता है । प्रेम त्याग के पथ पर चलता है, कर्तव्य की ज्योति जलाता है । वासनाजन्य भोग के तमस् से उसका कुछ भी सम्बन्ध नहीं है ।
सीता के प्रति एक ओर रावण के हृदय में आकर्षण है और दूसरी ओर लक्ष्मण के हृदय में भी आकर्षण है । किन्तु रावण का आकर्षण वासना के विष से भरा है, और लक्ष्मण का आकर्षण मातृत्व-भाव की पवित्र भावना से ओत-प्रोत है। सीता की सेवा लक्ष्मण ने किस प्रकार की ! उसके लिए वह प्राण देने को भी तैयार रहा, और अपनी सुख-सुविधाओं को ठोकर लगाई। यह सब आकर्षण के बिना सम्भव नहीं था । परन्तु यह आकर्षण निःस्वार्थ भाव से था । उसमें वासना के लिए रंचमात्र भी अवकाश न था। सीता के प्रति लक्ष्मण की मातृत्व- बुद्धि थी । उसने अपने जीवन में सीता को सदा माता की दृष्टि से ही देखा था ।
जब रावण सीता का अपहरण कर आकाश मार्ग से जा रहा था, तब सीता अपने शरीर के अलंकार नीचे फेंकती गई थी, जिससे राम को पता लग जाए कि वह किस मार्ग से कहाँ ले जाई गई है। ज्यों ही राम की दृष्टि उन पर पड़ी, उन्होंने उनको उठा लिया और कहा- ये आभूषण तो सीता के ही मालूम होते हैं। देखना लक्ष्मण, ये सीता के ही हैं न ?
उस समय लक्ष्मण के अन्तर जीवन की उज्ज्वलता एवं पवित्रता बाहर में भी चमक उठती है । लक्ष्मण का वह जीवन, भारतीय आदर्श का प्रतीक बनकर रह जाता है । वह भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है और भारत के शील तथा सौजन्य को चार चाँद लगा देता है । उस समय लक्ष्मण क्या बोले, मानो, भारत की अन्तरात्मा ही बोल उठी ? लक्ष्मण ने कहा
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