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ब्रह्मचर्य-दर्शन रूपी कुरुक्षेत्र और धर्म क्षेत्र में जीवन की लड़ाई लड़ी जा रही है । उसमें एक तरफ अच्छी और दूसरी तरफ बुरी वृत्तियाँ हैं । बुरी वृत्तियों के कारण हजारों लाखों क्या, अनन्त जिन्दगियाँ बर्बाद हो चुकी हैं। यदि आज भो हम उन वृत्तियों को नहीं जीत सकते, तो अनन्त जिन्दगियाँ जैसे पहिले बर्बाद हुई हैं, वैसे ही भविष्य में भी बर्बाद हो जाएंगी।
___इन्सान की जिन्दगी बहुत ऊंची जिन्दगी है और उसका जन्म बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है । उसकी महिमा नहीं गाई जा सकती। देवताओं के जन्म से भी अधिक महिमामय है मानव-जन्म ! भगवान् महावीर ने अपने सभी साधकों को बार-बार 'देवाणुप्पिया' 'देवों के प्यारे' कह कर सम्बोधित किया है ।
अपने जीवन-कल्याण के लिए जो भी बालक, बूढ़े या नौजवान भगवान् के सम्मुख आए, जो भी बहिनें सामने आई, और तो क्या, पापो से पापी और अधम से से अधम व्यक्ति भी आए, उन सबसे भगवान् महावीर ने यही कहा, कि तुम प्राप्त जीवन का कल्याण करो। तुम्हारा जीवन देवताओं के जीवन से भी अधिक धन्य है।
गायन्ति देवाः किल गोतकानि, पन्यास्तु ते भारतभूमि-भागे। स्वर्गापवर्गास्पद - मार्ग-भूते, भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥
-विष्णु पुराण २, ३, २४ स्वर्ग में बैठे हुए देवता भी गाते हैं, कि धन्य हैं वे लोग, जिन्हों ने भारत-जैसी आर्य-भूमि में जन्म लिया है । हम न जाने कब देवता से इन्सान बनेंगे, कब हम अपने बन्धनों को तोड़ कर स्वतंत्र मुक्त हो सकेंगे।
__इस रूप में भारत की पौराणिक गाथाओं में मानव-जीवन की महत्ता का नाद गूंज रहा है । हो, तो पूर्व पुण्योदय से इस भूमि पर मनुष्य के रूप में अवतरित तो हो गए, मगर प्रश्न है कि अब उसे सार्थक किस प्रकार किया जाए ? ।
एक दिन राम ने बालक के रूप में जन्म लिया और रावण ने भी बालक के रूप में जन्म लिया। जन्म से ही राम, मर्यादा पुरुषोत्तम राम नहीं बन गए थे और जन्म से ही रावण, परनारी-हारी रामस नहीं बन गया था। जब वे अपने जीवन की राह पर आगे बढ़े, तब एक राम और दूसरा रावण बन गया। एक की अच्छी वृत्तियों ने, बुरी वृत्तियों को पराजित करके उसे राम बना दिया; और दूसरे की बुरी वृत्तियों ने अच्छी वृत्तियों पर विजय पाकर उसे रावण बना दिया।
' अभिप्राय यह है, कि भली बुरी वृत्तियों के निरन्तर जारी रहने वाले संघर्ष में अगर भली वृत्तियों को विजय प्राप्त होती है, तो जीवन भला बन जाता है, और
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