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ब्रह्मचर्य-वर्शन
है और यहाँ रोते-रोते आने वाले भी हँसते-हँसते बिदा होते हैं ? समझ में नहीं आता, ऐसी परस्सर विरोधी बातें क्यों कहते हैं ?"
आखिर, साहस करके एक लड़के ने पूछ ही लिया- "बाबा, पहले तो आपने हमारे गाँव की बहुत बुराई की थी और अब उसी को स्वर्ग-भूमि बता दिया ! यह क्या बात है ? इसमें क्या रहस्य है ? एक ही गाँव के विषय में आपके दो विभिन्नविचार क्यों हैं ?"
तब बुड्ढा बोला- “तुम समझते नहीं । पहला आदमी आग की चिनगारी था और जलती हुई भेड़ था । जलती भेड़ जहाँ भी जाएगी, सब जगह आग लगाएगी ! सोचो तो सही-जिस जन्मभूमि में उसकी कई पीढ़ियां गुजर चुकी है और स्वयं भी जिन्दगी के ३०-४० वर्ष गुजार चुका है, फिर भी वह एक भी स्नेही और मित्र नहीं बना सका और कहता है कि सारे के सारे शत्रु हैं, मुझे कुचलने के लिए हैं, बस किसी तरह प्राण बचाकर आया हूँ। जो इतने जीवन में अपना एक भी प्रेमी नहीं जुटा सका, एक भी संगी-साथी नहीं बना सका वह यहाँ रह कर घृणा और द्व ेष फैलाने के सिवाय और क्या करता ? वह जितनी देर गाँव में रहता, बुरे संस्कार डाल कर जाता । अतएव यों बुरा बता कर मैंने तुम्हारे गाँव की रक्षा की है। वह इस गाँव में न रहे, इसी में गाँव की भलाई है । वह आग, जो बाहर से जलती हुई आई है, बाहर की बाहर ही चली जाए। ऐसे आदमी को क्या तुम अपने घर में रखना पसंद करोगे ?"
सब लड़के कहने लगे - "नहीं, हम तो नहीं रक्खेंगे ।"
बूढ़े ने सन्तोष के साथ कहा- -"तब तुम मुझ पर क्यों सन्देह कर रहे थे ? जब तुम अपने घर में उसे पसन्द नहीं करते, तब गाँव में कैसे पसन्द कर सकते हो ? क्या सारा गाँव तुम्हारा घर नहीं है ? आशय यह है, कि उस आदमी का गाँव में रहना अच्छा नहीं था । बुरा आदमी सब जगह बुराई फैलाता है ।"
एक लड़के ने पूछा - "तो फिर दूसरे आदमी को रहने के लिए क्यों कहा ?" बूढ़ा - " जो इन्सान है, और इन्सानों के बीच रहता है, उसको किसी न किसी रूपमें इन्सान ही बर्बाद करने वाले भी होते हैं । किन्तु वह कितना भला आदमी है, कि अपने शत्रुओं को याद नहीं कर रहा है, विरोधियों को याद नहीं कर रहा है, अपितु केवल अपने स्नेही सहयोगियों को याद कर रहा है, फलस्वरूप अपने गाँव की भलाई करता है, जरा भी बुराई नहीं कर रहा है। आखिरकार, वह गाँव से तंग आकर ही भागा है, किन्तु उसके जीवन में कितनी मिठास है ? वह जहाँ कहीं भी जाएगा, गाँव के गौरव को चार चांद लगाता आएगा। ऐसे भले आदमी का गाँव में रहना अच्छा है । और जब उस से किसी को हानि नहीं पहुंचती, तब उसकी सहायता करना और उसे माश्रय देना, हम सब का मानवीय कर्तव्य हो जाता है ।
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