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ब्रह्मचयं दर्शन
थका हुआ । वह बूढ़े के पास आया और पूछने लगा - "क्यों बूढ़े, यह आगे जो गाँव नज़र आ रहा है, कैसा है ?
खड़ा हो
आने वाले ने न तो अभिवादन किया और न नमस्कार ही । वह ऐसे ही तनकर गया । उसके बोलने में शिष्टता नहीं थी, वाणी में मधुरता नहीं थी । लट्ठ की तरह आकर वह खड़ा हो गया, और प्रश्न करने लगा ।
उत्तर दिया- 'गाँव कैसा है ?
जब उसने पूछा - 'गाँव कैसा है ?' तब बूढ़े वह इंट, पत्थर और लकड़ी वगैरह का बना है ।'
मुसाफिर ने कहा - 'यह तो दिखाई दे रहा है, किन्तु वहाँ के रहने वाले हैं ?"
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बूढ़ा - "अच्छा, यह प्रश्न है, तुम्हारा ? तो मैं भी पूछता हूँ —तुम यह बताओ कि जिस गाँव से तुम आ रहे हो, वह कैसा है ?"
मुसाफिर - "मेरे गाँव के बारे में क्यों पूछते हो ? वह तो पापियों और राक्षसों का गाँव है । मेरे गाँव में एक भी भला आदमी नहीं । वहाँ के लोगों ने मुझे बर्बाद कर दिया । उनकी आँखों से मेरे लिए आग बरसती थी और उनकी वाणी से मेरे प्रति घृणा और द्वेष टपकता था । उन्होंने अपनी जान में मुझको जिन्दा नहीं रहने दिया, और मैं बड़ी कठिनता से प्राण बचा कर भागा हूँ। मैं तो सोचता हूँ, कि गाँव में भूकंप आए, बिजली गिरे और सारा गाँव ध्वस्त हो जाए ! मैं भगवान् से यही प्रार्थना और कामना करता हूँ, कि जब मैं वहाँ फिर कभी लौटू, तो गाँव उजड़ा हुआ मिले, सुनसान मिले। सारा ग्राम मिट्टी में मिल जाए, नष्ट हो जाए ।"
इस पर मुखिया ने कहा - "भैया, सावधान रहना। हमारा गाँव उससे भी बुरा है । वहाँ से तो तुम जिन्दगी लेकर यहाँ तक आ भी गए, किन्तु इस गाँव में गए, तो नहीं कह सकता, कि जिन्दा बचोगे भी या नहीं क्या करोगे इस गाँव में जाकर ? मैं भी मुश्किल से जिन्दगी गुजार रहा हूँ। मेरी मानो, तो गाँव में मत जाना । नहीं र्ती, तुम्हारा जीवन सुरक्षित नहीं रहेगा ।"
बूढ़े की बात सुनकर मुसाफिर आगे चला गया। गाँव के लड़के, जो यह सब तें सुन रहे थे, सोचने लगे – “ इनके तो बड़े बुरे विचार हैं, अपने गाँव के विषय में । वह तो भयंकर विद्रोही जान पड़ते हैं। हम तो इनके इशारे पर नाच रहे हैं और समकते हैं, कि इनके द्वारा हमारे गाँव में मंगल ही मंगल है, और यह अज्ञात आगन्तुक त्री से कह रहे हैं, कि यहाँ से जिन्दगी लेकर नहीं लौटोगे । यह तो राक्षसों का गाँव है, हाँ एक भी भला आदमी नहीं है । कैसी विचित्र स्थिति है, बाबा की ?"
लड़कों के मन में इस प्रकार के भाव उत्पन्न हुए, किन्तु बूढ़े से कुछ पूछ लें, उनमें से किसी को भी यह साहस न हो. सका । और आगे फिर वही ज्ञान चर्चा प्रारम्भ हो गई ।
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