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________________ अन्तं .३५ नेता वही होता है, जिसके हजार सिर होते हैं । अर्थात् जो कुछ वह सोचे तो हजारों सिर भी वही सोचने लगे और वही हरकत हरेक के मन में खड़खड़ाने लगे । इस रूप में जो विचारों का एकीकरण कर सकता है, वही सच्चा नेता है । इसी प्रकार नेता जिस दृष्टिकोण से देख, हजारों लोग भी उसी दृष्टिकोण से देखने लगें, उसे जो दिखाई दे, हजारों को वही दिखाई दे, हजारों उसके दृष्टिकोण को अपनाने लगें, तो समझना चाहिए कि उसमें नेतृत्व आने लगा है । मनुष्य के शरीर में पैर तो दो ही होते हैं, किन्तु जिस राह पर नेता चलता है, हजारों कदम उसी पर चलने को तैयार हो जाते हैं, इस प्रकार जो हजार पैर वाला है, वही वास्तव में नेता है । ऐसा नेता सारे भू-मण्डल का स्पर्श करता है। अर्थात जो गाँव का नेता है, वह सारे गाँव पर छा जाता है, जो समाज का नेता है, वह सारे समाज पर छा सकता है और यदि कोई राष्ट्र का नेता बना है, तो समग्र राष्ट्र पर छा सकता है; समग्र जनता उस के संकेत पर चलती है। मगर वह उस से दस अंगुल अलग रहता है । वह समाज में काम करता है, जनता की सेवा करता है, जनता के जीवन में घुल-मिल जाता है, जनता का एकीकरण करता है, फिर भी वह उसके वैभव से दस अंगुल दूर रहता है । यहाँ पर दस अंगुल दूर रहने का अर्थ है- सच्चा लोकनायक पाँच कर्मेन्द्रियों और पाँच ज्ञानेन्द्रियों के सुख अर्थात् संसार के भोग-वैभव से दूर रहता है । देश का नेता देशका निर्माण करता है, समाज का नेता समाज का निर्माण करता है, नगर का नेता नगर का निर्माण करता है, और ग्राम का नेता ग्राम का निर्माण करता है और इस तरह नेताओं के द्वारा संसार का युगानुरूप नव-निर्माण होता है । किन्तु यदि नेता अपने जीवन को ऊंचा न रख सका और संसार की दलदल में फंस गया, तो निर्माण कार्य अच्छी तरह पूरा नहीं हो सकता । मैं उस ग्रामीण बूढ़े की बात कह रहा हूँ। वह गाँव के जीवन में घुल-मिल गया था । वह गाँव को उस पगडंडी पर ले आया था, कि उसका देखना, गाँव का देखना और उसका सोचना; गाँव का सोचना, माना जाता था । एक समय की बात है । संध्या का समय था और शीतल पवन चल रहा था । वह बूढ़ा समीप में बैठे बहुत से नवयुवकों से ज्ञान चर्चा कर रहा था । 'जब ज्ञान चर्चा करते हुए बहुत देर हो गई, तब बीच ही में वह बोल उठा- "यों बैठे रहने से शरीर. ठीक नहीं रहता है । चलो, बाहर घूम आएँ । बाहर मैदान में यही चर्चा चलेगी ।" सब चल पड़े । चल कर गाँव के बाहर आए तो थोड़ी दूर पर, एक सुहावनी जगह बैठकर बातें करने लगे। कुछ देर बाद उधर से एक पथिक निकला, बहुत है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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