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________________ प्रात्म-शाधन देवता भी नहीं हूँ। मुझमें जो विकार मालूम होते हैं, ये सब पुद्गल संयोग-जनित हैं। पानी में मिट्टी आ गई है, तो कीचड़ का रूप दिखलाई दे रहा है । जब यह सम्यग् दृष्टि जगी, तब आत्मा इस अंश में अपने स्वरूप में आ गई। यह दृष्टिकोण यदि एक बार भी जाग जाए, यदि एक बार भी जड़ और चेतन को अलगअलग समझ लिया जाए, तो फिर आत्मा कितनी ही क्यों न अधोदिशा में चली जाए, एक दिन वह अवश्य ही ऊपर उठेगी, कर्मों के बन्धन को काट कर अपने असली शुद्धस्वरूप में आ जाएगी। अपने शुद्ध-स्वरूप में आजाना, जड़ से सर्वथा पृथक् हो जाना ही मोक्ष होना कहलाता है। शुद्ध दृष्टि होने पर देर होना सम्भव है, मगर अंधेर होना सम्भव नहीं । अंधेर या अंधकार तभी तक सम्भव है, जब तक भेद-विज्ञान नहीं होता। . भगवान् महावीर ने संसार भर की आत्माओं को एक बहुत महत्त्वपूर्ण सन्देश दिया। जिन्हें यह सन्देश मिला, जिन्होंने इस पर विश्वास किया, उन्होंने अपनी मूल शक्ति को जगाने का प्रयत्न किया। भगवान ने कहा है, कि मेरा काम ज्योति जगाना है। ज्योति जगाने के बाद भी कभी अंधकार दिखाई दे, तो निराश मत होओ। वह अंधकार अब टिक नहीं सकता। एक बार भेद-विज्ञान की ज्योति का स्पर्श होते ही वह इतना कच्चा पड़ गया है, कि उसे नष्ट होना ही पड़ेगा ! वह नष्ट होकर ही रहेगा। भगवान् महावीर के पास हजारों जिज्ञासु और साधक आते थे। उनमें से कुछ ऐसे होते थे, कि भगवान् का प्रवचन जब तक सुनते, तब तक तो आनन्द में झूमते रहते और जब घर पहुँचते, तो फिर ज्यों के त्यों हो जाते, फिर उसी संसार के चक्र में फंस जाते। इस पर प्रश्न उठा, कि जो आत्माएं प्रवचन सुन कर गद्गद हो जाती हैं, जिनकी भावनाएं जाग उठती हैं, और मन में उल्लास पैदा हो जाता है, किन्तु ज्यों ही घर में पैर रक्खा कि ज्ञान की वह ज्योति बुझ गई, और भावना की वह लहर मिट गई, तो इस प्रकार के श्रवण से क्या लाभ ? भगवान् ने कहा-'इसमें भी बड़ा लाभ है । उनको आज तक प्रकाश की किरण नहीं मिली थी, और अनन्त-अनन्त जीवन धारण करके भी उन्हें पता नहीं चला था, कि जड़ क्या है और चेतन क्या है ? अगर एक बार भी किसी के अंत:करण में यह बुद्धि जाग उठी और उसने अपने चिदानन्द के दर्शन कर लिए, तो मेरा काम पूरा हो गया। वह भूलेगा और भटकेगा, किन्तु कहाँ तक भूला भटका रहेगा? आखिर, तो अपनी राह पर आएगा हो । वह अवश्य ही परम पद को प्राप्त करेगा। __ एक बार भगवान् महावीर अपने शिष्यों के साथ मगध से सिंध की विहारयात्रा पर जा रहे थे। राजा उदायी के अत्यन्त आग्रह पर सिन्ध की ओर उनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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