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________________ १२ ब्रह्मचर्य-दर्शन श्रावक एवं श्राविका का उसके साथ पवित्र सम्बन्ध रहता है। वह कभी भी उसे अपवित्र दृष्टि से नहीं देखता। श्रावक-श्राविका के लिए यह भी आवश्यक है कि वह स्पर्श-इन्द्रियजन्य वासना पर ही नहीं, प्रत्युत अन्य इन्द्रियों पर भी नियंत्रण रखे। उन्हें ऐसे पदार्थों को नहीं खाना चाहिए, जो वासना की आग को प्रज्वलित करने वाले हैं। उनका खाना स्वाद के लिए नहीं, बल्कि साधना के लिए शरीर को स्वस्थ रखने के हेतु है । इसलिए उन्हें खाना खाते समय सदा मादक वस्तुओं से, अधिक मिर्च मसालेदार पदार्थों से, तामस पदार्थों से एवं प्रकाम भोजन से बचना चाहिए । उनकी खुराक नियमित होनी चाहिए और उन्हें पशु-पक्षी की तरह जब चाहा तब नहीं, प्रत्युत नियत समय का ध्यान रखना चाहिए। इससे स्वास्थ्य भी नहीं बिगड़ता और विकार भी कम जागृत होते हैं। खाने की तरह सुनने, देखने एवं बोलने पर भी संयम रखना आवश्यक है। उन्हें ऐसे शृङ्गारिक एवं अश्लील गीत न गाना चाहिए और न सुनना चाहिए, जिससे सुषुप्त वासना जागृत होती हो। उन्हें अश्लील एवं असभ्य हँसी मजाक से भी बचना चाहिए। उन्हें न तो अश्लील सिनेमा एवं नाटक देखना चाहिए और न ऐसे भद्दे एवं गन्दे उपन्यासों एवं कहानियों को पढ़ने में समय बर्बाद करना चाहिए। अश्लील गीत, असभ्य हँसी-मजाक, शृङ्गारिक सिने चित्र और गन्दे उपन्यास देश, समाज एवं धर्म के भावी कर्णधार बनने वाले युवक-युवतियों के हृदय में वासना की आग भड़काने वाले हैं । कुलीनता और शिष्टता के लिए खुली चुनौती हैं और समग्र सामाजिक वायुमण्डल को विषाक्त बनाने वाले हैं। अतः प्रत्येक सद्गृहस्थ का यह परम कर्तव्य है कि वह इस संक्रामक रोग से अवश्य ही बचकर रहे । विवाह वासना को नियंत्रित करने का एक साधन है। यह एक मलहम (Ointr ent) है । और मलहम का उपयोग उसी समय किया जाता है, जब शरीर के किसी अंग-प्रत्यंग पर जख्म हो गया हो । परन्तु घाव के भरने के बाद कोई भी समझदार व्यक्ति शरीर पर मलहम लगाकर पट्टी नहीं बांधता; क्योंकि मलहम सुख का साधन नहीं, बल्कि रोग को शान्त करने का उपाय है। इसी तरह विवाह वासना के उद्दाम वेग को रोकने के लिए, विकारों के रोग को क्षणिक-उपशान्त करने के लिए है, न कि उसे बढ़ाने के लिए। अतः दाम्पत्य जीवन भी अमर्यादित नहीं, मर्यादित होना चाहिए। उन्हें भोगों में आसक्त नहीं रहना चाहिए। अस्तु दाम्पत्य जीवन में भी परस्पर ऐसी मर्यादाहीन क्रीड़ा नहीं करनी चाहिए , जिससे वासना को भड़कने का प्रोत्साहन मिलता हो । अतः श्रावक को भगवत्स्मरण करते हुए नियत समय पर सोना चाहिए, नियत समय पर ही उठना चाहिए और विवेक को नहीं भलना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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