________________
१८८
ब्रह्मचर्य दर्शन
दाहिना पांव उठाकर बाई जंघा पर रखें। दोनों पांव की एड़ी मजबूती से जंधा की जड़ में जमादें । घुटने पृथ्वी से मिले रहें । ठोड़ी कंठ के नीचे गड्ढे में लगाली जाए तो अधिक श्रेष्ठ है । इसके साथ स्थिर चित्त से प्राणायाम भी हो, तो और भी उत्तम है।
____ इनका अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए । एक मिनट से. प्रारम्भ करके एक घण्टा का अभ्यास प्रतिदिन होना चाहिए । इन आसनों के साथ, यदि पेट को भीतर सिकोड़ने और फुलाने का कार्य किया जा सके, तो इससे उदर-विकार, वायु-विकार बीर्य-विकार, अर्श और मन्दाग्नि आदि विकार दूर हो जाते हैं । इन आसनों से शरीर का मोटापन भी दूर होता है।
आसन स्वच्छ और खुली हवा में करना चाहिए । जहाँ पर आसन किया जाए, वहां ध्यान रखना चाहिए कि वह स्थान स्वच्छ और साफ होने के साथ शान्तिमय और एकान्त भी होना चाहिए । योग-दर्शन के ग्रन्थों में आसन करने का सबसे उत्तम समय प्रातःकाल बताया गया है । आसन एक प्रकार के शारीरिक व्यायाम हैं। इनसे नाड़ियां शुद्ध होती हैं, पाचन-शक्ति बढ़ती है और रक्त का संचार सम्पूर्ण शरीर में ठीक रहता है।
सुन्दर आचरण, सुन्दर शरीर से अच्छा है । मूर्ति और चित्र की अपेक्षा यह उच्चकोटि का आनन्द देता है। यह कलाओं में सुन्दरतम कला है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org