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साधन खण्ड
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प्राणायाम :
आसन के समान प्राणायाम भी ब्रह्मचर्य की साधना के लिए एक महत्त्वपूर्ण साधन है । प्राणायाम शब्द का मौलिक अर्थ है-प्राण-शक्ति को आयाम करना, दीर्घ करना । आसन शारीरिक व्यायाम है और प्राणायाम श्वास-प्रश्वास का व्यायाम है । प्राण, उस वायु का भी नाम है, जिसमें जीवन-तत्त्व या आक्सीजन का भाग अधिक रहता है। प्राण उस आदि शक्ति को भी कहते हैं, जिसके आधार पर हमारे शरीर का यह जीवन-यंत्र सुचारु रूप से चलता है। परन्तु प्राण शब्द का अर्थ यहाँ प्राण वायु से ही समझना चाहिए । प्राणरूप वायु का आयाम ही प्राणायाम है । प्राणायाम में तीन क्रियाओं का समावेश होता है-वायु को अन्दर खींचना, वायु को अन्दर रोकना और वायु को पुनः बाहर निकालना । एक बार खींचने, रोकने और निकालने को एक प्राणायाम कहा जाता है । प्राणायाम से लाभ :
प्राणायाम स्वास्थ्य के लिए और विशेषतः ब्रह्मचर्य की साधना के लिए लाभदायक तो बहुत है, परन्तु विधिपूर्वक न होने से यह हानि भी कर सकता है । अनेक व्यक्ति इस प्राणायाम की साधना को अनियमित करने के कारण जहाँ रोगग्रस्त हो जाते हैं, वहाँ वे इसे नियमित करने से भयंकर से भयंकर रोग से भी मुक्त हो सकते हैं । अतः प्राणायाम की साधना किसी सुयोग्य गुरु की देख-रेख में ही करनी चाहिए। यदि व्यक्ति इस साधना को अविवेक से और असावधानी के साथ करता है, तो वह इससे लाभान्वित नहीं हो सकता। गृहस्थ को तीन से पाँच तक ही प्राणायाम की साधना के लिए विशेष रूप से शुद्ध और खुली वायु की आवश्यकता है। विधिपूर्वक
और शक्ति के अनुसार किया हुआ प्राणायाम शरीर की समग्र धातुओं को शोधकर विशुद्ध बना देता है । शरीर को रोग रहित बना देता है । इससे जठराग्नि उत्तेजित हो जाती है और पाचन-शक्ति बढ़ जाती है । मल साफ रहता है और भूख लगती है । प्राणायाम की साधना से रक्त की शुद्धि होती है एवं वीर्य स्थिर हो जाता है। शरीर में रहने वाले क्षय आदि भयंकर रोग इस प्राणायाम की साधना से समूल नष्ट-भ्रष्ट
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