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________________ ब्रह्मचर्य दर्शन भी आसन का अभ्यास किया जाए । फिर प्रति सप्ताह एक या दो मिनट बढ़ाते-बढ़ाते बारह मिनट तक ले जाना चाहिए। वर्ष भर में आध घण्टे से एक घण्टे तक का अभ्यास बढ़ाया जा सकता है । आगे चल कर यह साधन की स्थिति और परिस्थिति पर निर्भर है, कि वह कितने लम्बे समय तक आसन की साधना में स्थिर रह सकता है। पासन से लाभ: __ योग के ग्रन्थों में आसन से होने वाले लाभों के विषय में बहुत कुछ लिखा गया है, किन्तु आसन के मुख्य लाभ इस प्रकार हैं- शरीर का स्वस्थ रहना, शरीर हल्का रहना, शरीर का कान्तिमय हो जाना, शरीर में स्फूर्ति का रहना, वीर्य का स्तम्भन, वीर्य का शोधन, वीर्य का स्थिरीकरण, आँखों की रोशनी का बढ़ना, मस्तक के केशों का जल्दी श्वेत न होना, शरीर में किसी प्रकार की व्याधि उत्पन्न न होना, शरीर में मेद एवं मज्जा का न बढ़ना, शरीर का स्थूलत्व न होना और शरीर में आलस्य एवं प्रमाद का न रहना । शीर्षासन : शीर्षासन का दूसरा नाम विपरीत करणी मुद्रा भी है। इसमें सिर के बल उल्टा खड़ा होना होता है, जिससे रक्त एवं वीर्य नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता है और मस्तिष्क में जमा होने लगता है। इस आसन से वीर्य-दोष, रक्त-विकार, मिरगी, कुष्ठ, सिर एवं आँखों का दुर्बल होना आदि-आदि दोष दूर हो जाते हैं। विधि: ___ शीर्षासन की विधि यह है, कि शीर्षासन करने से पहले जमीन को स्वच्छ और साफ कर लेना चाहिए, कोई कम्बल अथवा अन्य कोई वस्त्र लपेटकर गुदगुदा करके, अथवा गोल बनाकर उस पर सिर रखने की जगह बनाले । इस आसन के करने से पूर्व शरीर के समस्त वस्त्र उतार दे और लंगोट या कटि वस्त्र कुछ ढीला कर देना चाहिए, ताकि रक्त प्रवाह में बाधा न पड़े। इतनी क्रिया करने के बाद जमीन पर घुटने टेक कर आसन पर बैठना चाहिए, फिर दोनों हाथ की उंगलियों को आपस में फंसाकर, कुहनी जमीन पर जमाकर, हथेलियों को जमीन पर रखना चाहिए। हथेलियों के ऊपर सिर नहीं रखना चाहिए, केवल इतना हो कि वे सिर के समीप रहें और सिर को इधरउधर हिलने से रोके रहें । सिर को जमीन पर जमा कर,पैरों को शरीर की ओर धीरे-धीरे लाना चाहिए, ताकि शरीर का बोझा सिर पर आने लगे । फिर घुटने मोड़ते हुए पैरों को बहुत धीरे-धीरे ऊपर उठाना चाहिए । प्रथम कमर को सीधा करना चाहिए, फिर पांव उठाते हुए उन्हें अधर में बिलकुल सीधे तान देना चाहिए और सिर के बल बिलकुल सीधे खड़े हो जाना चाहिए । यही शीर्षासन है । आसन पूरा होने पर शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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