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________________ साधन खण्ड - आसन: साध्यं की सिद्धि के लिए साधन की आवश्यकता रहती है। साधक अपनी साधना में साधन बिना सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता । ब्रह्मचर्य-योग को जब साधक अपनी साधना का साध्य स्वीकार कर लेता है, तब उसके सामने प्रश्न यह रहता है, कि इस साध्य को किस साधन से सिद्ध किया जाए ? भारतीय योग-शास्त्र में ब्रह्मचर्य योग की सिद्धि के लिए अनेक साधन बताए गए हैं। जिनमें तीन साधन मुख्य माने गए हैं-आसन, प्राणायाम और ध्यान । चित्त की बिखरी हुई वृत्तियों को एकत्रित करने के लिए, आसन, प्राणायाम और ध्यान की नितान्त आवश्यकता है। प्रासन: योग-दर्शन में चित्त-शुद्धि के लिए यम और नियम का उपदेश देने के बाद आसन का स्वरूप समझाया गया है। ब्रह्मचर्य की साधना के लिए भी कुछ आसनों की उपयोगिता और आवश्यकता है । कुछ आसन ब्रह्मचर्य के संरक्षण के लिए बहुत उपयोगी हैं । उनके प्रतिदिन के अभ्यास से ब्रह्मचर्य की साधना एक प्रकार से सरल और आसान बन जाती है । आसन की साधना का एक ही उद्देश्य है, कि मेरुदण्ड को सहज भाव से रखा जाए। वक्ष एवं ग्रीवा सीधे तथा समुन्नत रहें, ताकि शरीर का सम्पूर्ण भार पसलियों पर गिरे । शरीर को स्थिर करना ही आसन का उद्देश्य नहीं है, आसन का उद्देश्य है, शरीर की स्थिरता के साथ मन की स्थिरता। आसन चौरासी प्रकार के बताए गए हैं, किन्तु यहाँ पर कुछ आसनों का ही उल्लेख किया जाएगा, जो ब्रह्मचर्य की साधना में सहायक हो सकते हैं। इन आसनों के प्रतिदिन अभ्यास से मनुष्य को वीर्य-शक्ति स्थिर एवं परिपुष्ट होती है । मासन का समय : आसन का समय कितना होना चाहिए यह भी एक प्रश्न विचारणीय रहा है। इस विषय में साधक एवं सिद्धों के विभिन्न विचार उपलब्ध होते हैं । परन्तु सामान्य रूप से प्रारम्भ में लगभग एक सप्ताह तक पन्द्रह सैकिण्ड से बीस सैकिण्ड तक किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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