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________________ १० ब्रह्मवर्य दर्शन एवं विलासिता के क्षेत्र में फैलाने का नहीं होना चाहिए। क्योंकि विलासिता (Luxuriousness) विनाश है और संयम विजय है । अतः संयम की ओर कदम बढ़ाने वाला व्यक्ति ही एक दिन वासना पर पूर्णतः (absolutely ) विजय पा सकता है । इसलिए आत्म-विजेता ही सच्चा विजेता है । ब्रह्मचर्य के भेद : मानवमन की वासना, इच्छा या कामना आध्यात्मिक नहीं, भौतिक शक्ति है । वह स्वतंत्र नहीं है, उसका नियंत्रण मनुष्य के हाथ में है । यदि मनुष्य उसे अपने नियंत्रण से बाहर नहीं जाने देता है, तो वह इन्सान का कुछ भी विगाड़ नहीं कर सकती । आँखों का काम देखना है और अन्य इन्द्रियों के भी अपने-अपने काम हैं । ब्रह्मचारी की इन्द्रियां भी देखने, सुनने, सूंघने, चखने आदि के काम तो करती ही हैं, परन्तु वे उसके नियंत्रण से बाहर नहीं हैं, इसलिए वासना की आग उसका जरा भी बाल बांका नहीं कर सकती । परन्तु जब मनुष्य का वासना पर से नियंत्रण हट जाता है, वह बिना किसी रोक-टोक के मन और इन्द्रियों को खुला छोड़ देता है, तो वे अनियंत्रित एवं उच्छृङ्खल वासनाएं उस को तबाह कर देती हैं, पतन के महागर्त में गिरा देती हैं । वस्तुतः शक्ति, शक्ति ही है । निर्माण या ध्वंस की ओर मुड़ते उसे देर नहीं लगती । इसलिए यह अनुशासक ( Controller) के हाथ में है कि वह उसका विवेक के साथ उपयोग करे । वह उस शक्ति को नियंत्रण से बाहर न होने दे । आवश्यकता पड़ने पर शक्ति का उपयोग हो सकता है, परन्तु विवेक के साथ। विवेकशील का काम एक कुशल इंजीनियर ( Expert Engineer ) का काम है । उसे अपने काम में सदा सावधान रहना पड़ता है और समय एवं परिस्थितियों का भी ध्यान रखना पड़ता है । मान लो, एक इंजीनियर पानी के प्रवाह को रोककर उसकी ताकत का मानव जाति के हित में उपयोग करना चाहता है। इसके लिए वह तीनों ओर से मजबूत पहाड़ियों से आवृत्त स्थल को एक ओर दीवार बनाकर बाँध (Dam) का रूप देता है । वह उसमें कई द्वार भी बनाता है, ताकि उनके द्वारा अनावश्यक पानी को निकालकर बाँध की सुरक्षा की जा सके । बाँध में जितने पानी को रखने की क्षमता है, उतने पानी के भरने तक तो बाँध को कोई खतरा नहीं होता । परन्तु जब उसमें उसकी क्षमता से अधिक पानी भर जाता है, उस समय भी यदि इंजीनियर उसके द्वार को खोलकर फालतू पानी को बाहर नहीं निकालता है, तो वह पानी का प्रबल स्रोत इधर-उधर कहीं भी बाँध की दीवार को तोड़ देता है और लक्ष्यहीन बहने वाला उद्दाम जल-प्रवाह मानव-जाति के लिए विनाशकारी प्रलय का दृश्य उपस्थित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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