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________________ उपक्रम की प्रवृत्ति में नहीं लगा देता है, तब तक वह ब्रह्मचर्य की साधना में पूर्णतः सफल नहीं हो सकता। इसके लिए यह आवश्यक है कि साधक अपने जीवन को परिवार, समाज, राष्ट्र एवं धर्म की सेवा और साधना में लगा दे। साधक को चाहिए कि वह धर्मसाधना एवं जनसेवा को अपना ध्येय बनाकर चले । जब उसके तीनों योग किसी शुभ कार्य में केन्द्रित हो जाएँगे, तो उनसे, न तो विषय-विकार का चिन्तन करने का अवसर मिलेगा और न वासनाओं की ओर भागने का अवकाश ही। अतः यह कहावत नितान्त सत्य है कि "काम की दवा काम है।" मन, वचन और काय योग को किसी सत्कर्म में लगादो, वासना का तूफान स्वतः ही शान्त हो जाएगा। वासना, आत्मा का सबसे भयंकर एवं खतरनाक शत्रु है। इस पर विजय पाना आसान काम नहीं है। हजारों, लाखों व्यक्तियों को परास्त कर देना सरल है, परन्तु वासना पर काबू पाना दुष्कर ही नहीं, महादुष्कर है। उसमें मनुष्य की शारीरिक एवं सामरिक (शस्त्रों की) शक्ति का नहीं, आत्म-शक्ति का परीक्षण होता है । विषयवासना की ओर प्रवहमान योगों के प्रबल वेग को सेवा-शुश्र षा एवं आत्म-साधना की ओर मोड़ना, पूर्व की ओर विद्युत-गति से बहते हुए दरिया के तूफानी प्रवाह को एकाएक पश्चिम की ओर मोड़ने से कम कठिन नहीं है। इसी कारण भगवान् महावीर ने हजारों-हजार योद्धाओं पर पाने वाली विजय को विजय नहीं कह कर, वासना पर प्राप्त विजय को ही सच्ची विजय कहा है। और गांधी जी ने भी इस बात का समर्थन किया है कि-"ताकत के द्वारा विश्व पर विजय प्राप्त करने की अपेक्षा उच्छङ्कल वासना पर विजय पाना अधिक कठिन है।"7 भारतीय संस्कृति का स्वर विजय का स्वर है । वस्तुतः वह विजय की संस्कृति है । बाह्य-विजय की नहीं, आत्म-विजय की। वह इन्सान को इन्सान से लड़ना नहीं सिखाती, बल्कि वासनाओं से संघर्ष करना सिखाती है । वह मानव को वासनाओं पर नियंत्रण करने की प्रेरणा देती है। वह वासनाओं को फैलाने के पक्ष में नहीं है । उसका सदा यह स्वर रहा है कि वासनाओं को फैलाओ मत, समेटो। यदि तुम समस्त वासनाओं पर एकदम कन्ट्रोल नहीं कर सकते हो, तो धीरे-धीरे उन्हें वश में करने का प्रयत्न करो। यदि तुम्हारी गति धीमी है, तो इसके लिए घबराने जैसी बात नहीं है । परन्तु इस बात का सदा, सर्वदा ध्यान रखो कि तुम्हारा प्रयत्न अपने आपको काम,भोग ६. जो सहस्सं सहरसाणं, संगमे दुज्जए जिणे । एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जो । -उत्तराध्ययन सूत्र, १,३४ । 17. To conquer the subtle passions seems to me to be harder far than the physical conquest of the world by the force of arms. -Gandhiji (My Experiment With Truth) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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