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ब्रह्मचर्य-दर्शन वाणी को एवं शरीर को दुर्बल, अशक्त एवं कमजोर बनाने वाली वासना है । खाद्य पदार्थों की वासना मनुष्य को स्वादु-लोलुप बनाती है । स्वाद की ओर आकर्षित मनुष्य भक्ष्याभक्ष्य का विवेक भूल जाता है, समय एवं परिमाण को भूल जाता है अर्थात वह यह सब भूल जाता है कि उसे क्या खाना चाहिए? कैसे खाना चाहिए? कब खाना चाहिए ? क्यों खाना चाहिए ? और कितना खाना चाहिए ? अतः अधिक एवं अंटसंट वस्तुएँ खाने से उसकी वासना जाग उठती है, काम-भावना में वृद्धि होती है और पाचन क्रिया ठीक नहीं होने से रोग आ घेरते हैं। और उसका परिणाम यह होता है है कि वह दुर्बल एवं कमजोर हो जाता है । इसी तरह कान, आँख, नाक एवं स्पर्शनइन्द्रिय की वासना भी मन की स्थिरता को नष्ट कर देती है। इस तरह भोगों की वासना के निर्मम प्रहार से जीवन निस्तेज हो जाता है। ऐसी स्थिति में वह कष्टों एवं परीषहों को जरा भी नहीं सह सकता और सहिष्णुता के अभाव में वह आत्म-साधना नहीं कर सकता।
साधना के लिए शरीर का सशक्त होना, ध्रुव सत्य है, और शारीरिक सक्षमता को बनाने के लिए वासनाओं पर नियंत्रण होना ही चाहिए। क्योंकि वासनाओं के नियंत्रण में रहने वाला मनुष्य वासनाओं का दास बन जाता है, दास ही नहीं, वह दास का भी दास बन जाता है । और गुलाम व्यक्ति न कभी अपनी ताकत को बढ़ा पाता है और न कभी आत्म-दर्शन ही कर पाता है । आत्म-दर्शन करने का एक ही मंत्र हैवासना पर नियंत्रण करो, संयम से खाओ, संयम से पीओ, संयम से पहनो, संयम से देखो, संयम से सुनो, संयम से बोलो, संयम से सोओ, संयम से जीयो और कामनाओं का त्याग करदो। क्योंकि भोगेच्छा एवं विषयों की कामना का त्याग किए बिना, हम मन एवं इद्रियों पर पूरा नियंत्रण नहीं रख सकते । अतः कामनाओं का त्याग करना ही वासनाओं पर विजय पाना है और यही शक्ति का मूल स्रोत है।
वासना-संयम :
ब्रह्मचर्य का पालन एक कठोर साधना है, घोर तप है। इसके लिए केवल शरीर पर ही नहीं, मन पर, वाणी पर एवं इन्द्रियों पर भी कन्ट्रोल करना पड़ता है। मन, वचन एवं काय-योग को नियंत्रण में रखना होता है। सब को आत्मा में केन्द्रित करना पड़ता है। जब तक साधक अपने योगों को आत्म-चिन्तन एवं आत्म-साधना
4. The worst of slaves is he whom passion rules.
5. Renunciation of objects, without renunciation of objects, in
however hard you may try.
-Burke. short-lived,
-Gandhiji.
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