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________________ बर्शन-शात्र : ब्रह्मचर्य १७३ ही उसकी भावना बनती है। मनुष्य व्यवहार में वही करता है, जो कुछ उसके हृदय के अन्दर भावनाएं उठती हैं । विचार से आचार प्रभावित होता है और आचार से मनुष्य का विचार भी प्रभावित होता है । अध्यात्म दृष्टि : . भारतीय धर्म, दर्शन और संस्कृति भौतिक नहीं, आध्यात्मिक हैं । यहाँ प्रत्येक व्रत, तप, जप और संयम को भौतिक दृष्टि से नहीं, आध्यात्मिक दृष्टि से आंका जाता है । साधक जब भोग-वाद के दल-दल में फंस जाता है, तो अपनी आत्मा के शुद्ध स्वरूप को वह भूल जाता है। इसलिए भारतीय विचारक, तत्व-चिन्तक और सुधारक साधक को बार-बार यह चेतावनी देते हैं कि आसक्ति, मोह, तृष्णा और वासना के कुचक्रों से बचो । जो व्यक्ति वासना के झंझावात से अपने शील की रक्षा नहीं कर पाता, वह कथमपि अपनी साधना में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता । न जाने कब वासना की तरंग मन में उठ खड़ी हो। उस वासना की दूषित तरंग के प्रभाव से बचने के लिए सतत जागरूक और सावधान रहने की आवश्यकता है। ब्रह्मवर्य का प्रर्य : ब्रह्मचर्य के लिए भारतीय साहित्य में इन शब्दों का प्रयोग उपलब्ध होता है-“उपस्थ-संयम, वस्ति-निरोध, मैथुन-विरमण, शील और वासना-जय ।" योग सम्बन्धी ग्रन्थों में ब्रह्मचर्य का अर्थ इन्द्रिय-संयम किया गया है । अथर्ववेद में वेद को भी ब्रह्म कहा गया है । अतः वेद के अध्ययन के लिए आचरणोय कर्म, ब्रह्मचर्य है । ब्रह्म का अर्थ परमात्मभाव किया जाता है । उस परमात्म-भाव के लिए जो अनुष्ठान एवं साधना की जाती है, वह ब्रह्मचर्य है । बौद्ध पिटकों में ब्रह्मचर्य शब्द तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है । दीघनिकाय के 'महापरिनिव्वाण सुत्त' में ब्रह्मचर्य शब्द का प्रयोगबुद्ध प्रतिपादित धर्म-मार्ग के अर्थ में हुआ है। दीघनिकाय के पोट्टपाद में ब्रह्मचर्य का अर्थ है-बौद्ध धर्म में निवास । विशुद्धि-मार्ग के प्रथम भाग में ब्रह्मचर्य का अर्थ वह धर्म है, जिससे निर्वाण की प्राप्ति हो । मैन-दृष्टि से ब्राह्मचर्य : जैन-दर्शन में ब्रह्मचर्य शब्द के लिए मैथुन-विरमण और शील शब्द का प्रयोग विशेष रूप से उपलब्ध होता है । 'सूत्रकृतांग सूत्र' की आचार्य शीलाङ्क कृत संस्कृत टीका में, ब्रह्मचर्य की व्याख्या इस प्रकार से की है--"जिसमें सत्य, तप, भूत-दया और इन्द्रिय निरोध रूप ब्रह्म की चर्या-अनुष्ठान हो, वह ब्रह्मचर्य है ।" वाचक उमास्वाति के तत्वार्थ सूत्र' ६-६ के भाष्य में गुरुकुल-वास को ब्रह्मचर्य कहा है। ब्रह्मचर्य का उद्देश्य बताया है कि व्रत-परिपालन, ज्ञान-वृद्धि और कषाय-जय । भाष्य में मैथुन शब्द को व्युत्पत्ति इस प्रकार की है-स्त्री और पुरुष का युगल मिथुन कहलाता है । मिथुन के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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