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________________ धर्म-शास्त्र : ब्रह्मचर्य संस्कृति में उस व्यक्ति के जीवन को गर्हित एवं निन्दनीय समझा जाता है। दुनिया का कोई भी धर्म क्यों न हो, उन सब का एक मत और एक स्वर यही है कि ब्रह्मचर्य महान धर्म है । वर्तमान युग में गाँधी जी ने भी ब्रह्मचर्य की स्थापना को जीवन विकास के लिए परमावश्यक माना है । और उन्होंने स्वयं इस व्रत की दीर्घ काल तक साधना करके इसे परखा है । १६७. ब्रह्मचर्य क्या है ? वह चरित्र का मूल है। वह मोक्ष का एक मात्र कारण है । जो व्यक्ति विशुद्ध भाव से ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह पूज्यों का भी पूज्य बन जाता है । जो व्यक्ति ब्रह्मचर्यं की साधना करता है, वह दीर्घ जीवन प्राप्त करता है । उसका शरीर स्वस्थ रहता है, उसका मन प्रसन्न रहता है और उसकी बुद्धि स्वच्छ एवं पवित्र रहती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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