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________________ सिद्धान्त खण्ड नीति-शास्त्र : ब्रह्मचर्य मानव-जीवन के विकास में उसके उत्थान और उसकी आध्यात्मिक साधना में नीति-शास्त्र का एक बहुत बड़ा योग-दान रहा है । नीति-शास्त्र मानव-जीवन का एक परिष्कृत एवं संस्कृत दर्शन है । नीति-शास्त्र इस नैतिक विश्वास को विचारात्मक अन्तष्टि में परिणत करता है कि सत् से असत् का क्या भेद है, शुभ का अशुभ से क्या विभेद है ? मुख्य रूप में जीवन के शुभत्व , और अशुभत्व का विश्लेषण करना, यही नीति-शास्त्र का प्रधान उद्देश्य है। नीति-शास्त्र विचारमूलक नैतिकता का विज्ञान है । यह एक नीति का विज्ञान है। नीति-शास्त्र नैतिकता की मीमांसा है । नीति-शास्त्र विश्वास को विवेक में परिवर्तित करता है। एक विद्वान के कथनानुसार नीतिशास्त्र मनुष्यों की आदतों की पृष्ठभूमि में स्थित सिद्धान्तों का विवेचन और उनकी बुराई एवं अच्छाई के कारणों का विश्लेषण करता है। यह आचार का नियामक विज्ञान है । इसी आधार पर इसे आचार-शास्त्र भी कहा जाता है। इसे (Moral philosophy) भी कहते हैं। नीति-शास्त्र विज्ञान नहीं है, क्योंकि विज्ञान हमें, जानना सिखाता है जब कि नीति-शास्त्र हमें कर्तव्य एवं आचरण सिखाता है वस्तुतः नीति-शास्त्र एक आचार शास्त्र है । प्लेटो के विचार के अनुसार मानव-जीवन के तीन आदर्श हैं- सत्यं, शिवं, सुन्दरं । मनुष्य के अनुभवात्मक जीवन में यह सर्वाधिक मूल्य रखते हैं । इनका सम्बन्ध हमारे वर्तमान जीवन के तीन पहलुओं के साथ है-ज्ञान, क्रिया और भावना । नीति-शास्त्र इन तीनों के तथ्य का अनुसंधान करके उन्हें जीवनोपयोगी बनाने का प्रयत्न करता है। नीति-शास्त्र का क्षेत्र: नीति-शास्त्र का क्षेत्र मनुष्य के व्यवहार एवं चरित्र का प्रकाशन है। चरित्र संकल्प का अभ्यस्त रूप है । यह मन की आन्तरिक. वृत्ति अथवा अभ्यस्त क्रियाओं से उत्पन्न एक स्थायी प्रवृत्ति है । आचार-शास्त्र को कभी चरित्र का विज्ञान भी कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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