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________________ मनोविज्ञान : ब्रह्मचर्य १६१ सकते । काम-वासना केवल मनुष्य में ही नहीं, अपितु सृष्टि के प्रत्येक प्राणी में किसी न किसी रूप से न्यूनाधिक मात्रा में उपलब्ध होती है। निम्न मनोभूमिकाओं में काम की सत्ता से कोई इन्कार नहीं कर सकता। यह ठीक है कि उसके शोधन, परिमार्जन अथवा रूपान्तरकरण की पद्धति के सम्बन्ध में, मनोविज्ञान के विद्वानों में मतभेद अवश्य है । फिर भी सब मिलकर आधुनिक मनोविज्ञान के पण्डितों के कथन का सार इतना ही है, कि मनुष्य के मन में जो काम-वासना है, उसका बलात् बाहरी दबाव से दमन न किया जाए । दमन आखिर दमन ही है, दमन करने से वह मूलतः नष्ट नहीं होती, अपितु निमित्त पाकर अनेक उग्र विकारों के रूप में पुनः भड़क उठती है । उस पर नियन्त्रण करने का मनोविज्ञान की दृष्टि से सबसे अच्छा उपाय यही है कि विवेक के प्रकाश में उसका ऊर्वीकरण, रूपान्तर, शमन और शोधन किया जाए । मनोविज्ञान की दृष्टि से ब्रह्मचर्य की सबसे सुन्दर और उपयोगी व्याख्या यही हो सकती है। बद्धो हि को यो विषयानुरागी का वा विमुक्ति विषये विरक्तिः। -प्राचार्य शङ्कर बद्ध कौन है? जो विषयों में प्रासक्त है, वही वस्तुतः बद्ध है। विमुक्ति क्या है ? विषयों से वैराग्य हो मुक्ति एव मोक्ष है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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