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ब्रह्मचर्य-दर्शन
को सहज ही कर भी सकता है। डा० फ्रायड के कथनानुसार तो कवि और कलाकारों की उच्च से उच्च कृतियाँ, काम-वासना के उचित शोधन के परिणाम ही हैं।
काम-शक्ति की योग्य रूप से व्यय करने के लिए ही शोध शब्द का अधिकतर उपयोग एवं प्रयोग होता है । कुछ मनोविज्ञान के पण्डित काम-वासना को मानव-मन की मूल भावना नहीं मानते । उनके अनुसार काम-वासना मनुष्य की मूल वासना नहीं है, तो भी वह अधिक प्रबल वासनाओं में से एक तो अवश्य है । इस शक्ति का सदुपयोग न किया गया, तो वह मनुष्य को दुराचार एवं पापाचार की ओर ले जा सकती है । काम-वासना के शोधित होने पर मनुष्य किसी भी एक उच्च कला का समुचित विकास कर सकता है । कहा जाता है कि कवि कालिदास का जीवन पहले बहुत ही विषय-वासनामय था, किन्तु जब उसने अपनी काम-शक्ति का शोधन कर लिया, तब उसने 'शकुन्तला' एवं 'मेघदूत' जैसी श्रेष्ठ कृतियाँ, संसार को समर्पित करदी । मीराबाई के संगीत में जो माधुर्य और सौन्दर्य है, वह कहाँ से आया ? कहीं बाहर से नहीं, बल्कि मानसिक-शक्ति के शोधन से ही वह प्रकट हुआ था। संत सूरदास का मन पहले चिन्तामणि वेश्या पर आसक्त था, और वह उसके प्रेम को पाने के लिए सदा लालायित रहते थे। किन्तु यह दशा उनके जीवन की कोई उत्तम दशा न थी। एक दिन उन्होंने अपने मन की इस अधोदशा पर विचार किया, उनकी प्रसुप्त आत्म-चेतना जागृत हो गई और उन्होंने अपनी मानसिक शक्ति का शोधन करके अपने मन को कृष्ण-भक्ति में डुबोकर जो भक्तिमय मधुर पद्य लिखे हैं, वे संसार के साहित्य में बेजोड़ माने जाते हैं । उनके भक्तिमय संगीत की स्वर-लहरी चारों दिशाओं में एवं भारतीय संस्कृति के कण-कण में रम चुकी है । तुलसीदास अपनी पत्नी रत्ना के वासनामय प्रेम में इतना विह्वल था कि उसके पास पहुँचने के लिए रात्रि के अन्धकार में एक भयंकर सर्प को भी वह रस्सी समझ लेता है, कल्पना कीजिए उस कामातुर मन के विकल्प-वेग की। किन्तु आगे चल कर रत्ना के मधुर उपालम्भ से उनके जीवन की दिशा ही बदल जाती है। कामातुर तुलसीदास संत तुलसीदास बने जाते हैं । काम का भक्त तुलसी, राम का परम भक्त बन जाता है । तुलसी ने अपनी मानसिक शक्ति का शोधन करके अपनी काम-शक्ति का रूपान्तर एवं ऊर्वीकरण करके जो कुछ साहित्य की श्रेष्ठतम कृतियाँ संसार के समक्ष प्रस्तुत की हैं, निश्चय ही वे बेजोड़ और बेमिसाल हैं । तुलसीदास सदा के लिए अमर हो गए हैं । ब्रह्मचर्य की शक्ति :
__ मनोविज्ञान के पण्डितों ने काम-शक्ति के जिस स्वरूप का प्रतिपादन किया है, भले ही वह अपने सम्पूर्ण रूप में भारतीय विचारों से मेल न खाता हो, किन्तु इस बात में जरा भी सन्देह नहीं कि ब्रह्मचर्य की जादूभरी शक्ति से वे भी इन्कार नहीं कर
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