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ब्रह्मचर्य-दर्शन
शक्ति के लिए अत्यन्त हानिकर है । शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास के लिए, संयम द्वारा वीर्य का निरोध एवं स्तम्भन अत्यन्त आवश्यक है । वोर्य के सम्बन्ध में पूर्वी तथा पाश्चात्य विद्वानों की विचार-धारा का उल्लेख करते हुए उनकी तुलना पर विचार करना बड़ा ही रोचक विषय है । सामान्य दृष्टि से विचार करने पर दोनों में इस प्रकार के भेद हैं
१. आयुर्वेद में वीर्य सात धातुओं के क्रम से तथा पाश्चात्य विज्ञान के अनुसार रक्त से बनता है।
२. आयुर्वेद वीर्य को सम्पूर्ण शरीर में स्थित मानता है, जबकि पाश्चात्य विज्ञान इसे केवल अण्डकोषों द्वारा उत्पन्न हुआ मानता है ।
३. पाश्चात्य शरीर-विज्ञान में वीर्य के दो रूप माने हैं-अन्तः स्राव और बहिः स्राव, जबकि आयुर्वेद में कहीं पर भी इस प्रकार के भेदों का उल्लेख नहीं मिलता।
४. पाश्चात्य विज्ञान में शुक्र-कीटाणु की परिभाषा की गई है कि-उत्पादक वीर्य का नाम ही शुक्र-कीटाणु है, जबकि आयुर्वेद में उत्पादक वीर्य और उसे कीटाणु विशेष मानने का उल्लेख कहीं पर भी उपलब्ध नहीं होता है ।
इस प्रकार पौर्वात्य और पाश्चात्य शरीरवैज्ञानिकों में जो विचार-भेद है, उसका यहाँ पर संक्षेप में दिग्दर्शन करा दिया गया है । उन दोनों में कुछ समानताएं भी दृष्टिगोचर होती हैं, जिनका वर्णन संक्षेप में इस प्रकार है
१. आयुर्वेद शास्त्र में वीर्य को सात धातुओं में से गुजर कर बना हुआ माना गया है, परन्तु स्मरण रखना चाहिए कि आयुर्वेद के कुछ ग्रन्थों में वीर्य के सात धातुओं में से गुजर कर बनने के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं किया गया है। वे यह मानते हैं कि “केदार-कुल्या-न्याय' से रुधिर हो शरीर के विभिन्न अङ्गों को भिन्नभिन्न रस प्रदान करता है। जैसे बाग में पानो, सब जगह बहता है, उसमें से भिन्नभिन्न वृक्ष भिन्न-भिन्न रस खींच लेते हैं, वैसे ही रुधिर भी शरीर के अंग प्रत्यङ्गों को सींचता हुआ, समग्र शरीर को पुष्ट करता है। जब रुधिर अण्डकोषों में पहुंचता है तब वे रुधिर में से वीर्य खींच लेते हैं । ये विचार अक्षरशः पाश्चात्य शरीर-विज्ञान के साथ मिल जाता है।
२. आयुर्वेद वीर्य को समग्र शरीर में स्थित मानता है, जबकि पाश्चात्य विज्ञान इसे अण्डकोषों द्वारा जनित मानता है । परन्तु यह भेद स्वाभाविक भेद नहीं। पाश्चात्य यह नहीं मानते कि वीर्य अण्डकोष मे रहता है । वे इतना ही मानते हैं कि वीर्य के उत्पत्ति-स्थान अण्डकोष हैं । मनोमंथन के बाद वीर्य अण्डकोषों में प्रकट होता
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