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ब्रह्मचर्य का प्रभाव मनुष्य का विचार, वैसा उसका आचार, जैसा उसका आचार, वैसा उसका व्यवहार । प्रकृति, पुरुष अर्थात् आत्मा के अधीन है । उन्नत विचारों के समक्ष प्रकृति अपने आप अवनत हो जाती है।
भगवान् महावीर जब निर्जन सूने वन में ध्यान लगाते, तब क्या होता, कि कभी-कभी हिरण महाप्रभु के निकट आते और उनकी मंगलमय शान्त छवि देखकर मुग्ध हो जाते । हिरनों के मन और नयन, भगवान् की अद्भुत सौम्य, शान्त और मनोहर मुद्रा पर अटके रहते और वहीं आनन्द विभोर स्थिति में घंटों ही मंत्र मुग्न बैठे रहते । दूसरी ओर से मृगराज सिंह गर्जना करते आते और भगवान की प्रशान्त मुख-मुद्रा को देखकर, शान्त मन से वहीं भगवान के चरणों में बैठ जाते । आचार्यों ने वर्णन किया है कि कभी-कभी तो यहां तक होता, कि हिरणी का बच्चा शेरनी का दूध पीने लगता और शेरनी का बच्चा हिरनी का दूध पीने लगता।
___मानो, इस तरह वहाँ पहुँच कर शेर अपना शेरपन और हिरन अपना हिरनपन भूल जाता । वास्तव में वह एक ऐसी प्रखरतर शक्ति से प्रभावित हो जाते, कि उन्हें अपने बाह्य रूप का ध्यान ही न रह जाता । अगर ऐसा न होता, तो हिरन शेर के पास कैसे बैठता ? हिरनी का बच्चा, शेरनी के स्तनों पर मुह कैसे लगाता? यदि शेर का शेरपन न चला गया होता, और वह ज्यों-का-त्यों मौजूद होता, तो -उसकी क्रूर हिंसक मनोवृत्ति भी विद्यमान रहती, और यदि यह सिंह की मनोवृत्ति विद्यमान रहती, तो वह हिरन को सकुशल कैसे अपने पास बैठने देता ? शेरपन लेकर शेर, हिरन के पास चुपचाप शान्त और प्रीति-भाव से कैसे बैठा रहता ? और हिरन की भय प्रवृत्ति यदि न गई होती, तो वह भी निर्भय भाव से अपने भक्षक सिंह के पास कैसे बैठा रहता?
इस प्रकार विचार करने पर एक महान् अध्यात्म ज्योति का स्वरूप हमारे सामने आता है। हम सोचते हैं, कि अध्यात्म योगियों के समक्ष प्रकृति स्वयं अपना भयंकर रूप छोड़ देती है, और क्र र प्राणियों के हृदय से कर भाव भी निकल जाते हैं । इस रूप में प्रेम-भाव की और भ्रातृ-भाव की लहर प्राणियों में पैदा हो जाती है और तभी इस प्रकार के भव्य दृश्य नजर आते हैं।
इस स्थिति में आत्मा की महान् शक्ति का, बाह्य-जगत और प्राणी-जगत पर प्रभाव पड़ना असम्भव नहीं है। न केवल जैन धर्म ही, अपितु संसार के प्रायः सभी धर्म इस प्रभाव का समर्थन करते हैं । योग-सूत्र का यह सूत्र ध्यान देने योग्य हैमहिंसा-प्रतिष्ठायां तत्सलियो बैर-स्थागः ।
-पतञ्जलि जिस महान् साधक की आत्मा में अहिंसा की भावना प्रकृष्ट हो जाती है,
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