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________________ ११८ ब्रह्मचर्य दर्शन जिसके अन्तःस्तल के हृदय सरोवर में प्रेम, दया, करुणा एवं सहानुभूति की लहरें उछालें मारने लगती हैं, उसके आस-पास का वायु-मंडल इतना अधिक सात्विक, पावन और प्रभाव-जनक बन जाता है, कि परस्पर विरोधी जन्म-जात शत्रु भी अपनी वैरभावना का परित्याग कर बन्धु-भाव से हिलमिल कर साथ-साथ बैठ जाते हैं। इस प्रकार के विधानों और कथानकों पर आज का मानव विश्वास करते हुए हिचकिचाता है । इसका वास्तविक कारण यह नहीं है, कि ये कथाएँ विश्वास करने योग्य नहीं हैं। वास्तविक कारण यह है, कि आज आत्मा के गौरव को गाथाएँ फीकी पड़ गई हैं, क्योंकि आज का मनुष्य वासना के चंगुल में इतनी बुरी तरह से फंस गया है, अपनी ही बुरी वृत्तियों का ऐसा गुलाम हो गया है, कि वह अपने महान् व्यक्तित्व को भुला बैठा है । वास्तव में उसका यह अविश्वास आज की उसकी अपनी दयनीय दशा का द्योतक है और इस बात को प्रकट करता है. कि वह अधःपतन की बहुत गहराई में पैठ चुका है। किन्तु हम, जो उन पुरानी परम्पराओं के प्रति अपनी निष्ठा रखते हैं. और उनमें रस लेते हैं, आज भी उन घटनाओं पर विश्वास रखते हैं और सीता. एवं सोमा की कहानी को कहानी न मानकर, एक परम सत्य मानते हैं । द्रौपदी के उस महान् चरित्र-वैभव को भी हम नहीं भूल सकते, जो एक दिन दुर्योधन की सभा में सूर्य की भांति चमक उठा था ? द्रौपदी को नग्न करने का प्रयत्न किया जा रहा है, शरीर से खींचे गए वस्त्रों का ढेर लग जाता है, और दुष्ट दुःशासन के हाथ, जो हजारों का कत्ल करने के बाद भी ढीले नहीं पड़े थे, वस्त्र खींचते-खींचते धक जाते हैं, मगर द्रौपदी की साड़ी का कहीं अन्त दिखाई नहीं देता । दुःशासन के हजार प्रयत्न करने पर भी द्रौपदी नग्न नहीं हो सकी। मह कह देना सरल है, कि यह कहानी कपोल-कल्पित है, मगर ऐसा कहना अपने अज्ञान का ही परिचय देना है । आध्यात्मिक शक्ति और ब्रह्मचर्य की शक्ति से अपरिचित व्यक्ति हो ऐसी बात कह सकता है । हम ऐसा नहीं कह सकते, क्योंकि हम इन शक्तियों को महत्त्व देते हैं। दार्शनिक क्षेत्र में एक जटिल प्रश्न है, कि चेतना बाह्य पदार्थों से प्रभावित होती है, या बाह्य पदार्थ चेतना से प्रभावित होते हैं । आजकल के वैज्ञानिक कहते हैं, कि बाह्य जगत् का ही चेतना पर प्रभाव पड़ता है, बाहर के रंग-रूपों के प्रतिबिम्ब अन्दर जाते हैं, और मनुष्य उनमें फंस जाता है, बाहर के दृश्य मन की वृत्तियों को जगा देते हैं । मगर ऐसा एकान्त स्वीकार करना तर्क और अनुभव के विरुद्ध है। क्योंकि व्यवहार नयकी दृष्टि में जैसे बाह्य पदार्थ से चेतना प्रभावित होती है, उसी प्रकार अन्दर की चेतना से बाहर के पदार्थ भी प्रभावित हाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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