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________________ ब्रह्मचर्य वर्शन लेते हैं, तो इसका मतलब है कि आत्मा उन पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं डाल सकती । अगर वह अच्छी है, तो अन्दर में ही अच्छी है। किन्तु बाहर के पदार्थों में कुछ भी परिवर्तन नहीं कर सकती है। मगर, निमित्त-प्रधान व्यवहार नय से विचार करने पर पता चलता है, कि ऐसी बात नहीं है । एक विराट संसार हमारे सामने है और उसकी भौतिक शक्तियां भी हमारे सामने हैं । इनके सम्बन्ध में जैनधर्म ने समस्त संसार को एक अद्भुत चेतना दी है, कि अगर इन्सान अपने आपको भौतिक वासना के धरातल से ऊँचा उठा ले और अपने अन्तर में अध्यात्म-भाव की एक शक्तिशाली लहर जागृत कर ले, तो उस के समक्ष बड़ी-से-बड़ी भौतिक शक्तियां भी हाथ जोड़ कर खड़ी हो जाएँगी। इसका यह अर्थ है कि अध्यात्म शक्ति के द्वारा भौतिक शक्तियों में परिवर्तन हो सकता है और वह परिवर्तन यहाँ तक हो सकता है,कि आग का पानी भी बन सकता है। भौतिक विज्ञान के द्वारा ऐसा होने में कुछ देर लग सकती है, किन्तु आत्मा का जो विज्ञान है, और जो आध्यात्मिक शक्ति है, निमित्त-नैमित्तिक दृष्टि से उसमें इतनी क्षमता है, कि उसके द्वारा आग का पानी बनने में देर नहीं लग सकती। - आप सुनते आ रहे हैं, कि एक नारी थी, शीलवती । नाम था उसका, सोमा । उसको मारने का षड्यन्त्र रचा गया, फलस्वरूप घड़े में भयंकर विषधर साँप डाल कर रख दिया गया। उससे कहा गया, कि घड़े में फूलों की माला रखी है, ले आओ। सोमा, माला लेने गई। सहज भाव से ज्यों ही घड़े में हाथ डाला, कि साँप सचमुच ही पुष्पमाला बन गया। वह प्रसन्न भाव से फूलों की माला ले आई, परन्तु देखने वाले आचर्य में डूब गए, कि माला वहाँ कहाँ से आ गई ? हमने तो उसमें साँप डाला था। उत्सुकता के साथ दौड़कर घड़े को देखा, तो वह खाली पड़ा था। वापस लौट कर सोमा से फिर कहा गयो-."अच्छा, इस माला को वापिस ले जाओ और उसी घड़े में डाल दो।" सोमा ज्यों ही घड़े में माला डाल कर आई, तो साँप फिर फूकारने लगा। अब तो जादू का एक तमाशा ही बन गया । दूसरे देखते हैं, तो उन्हें साँप नजर आता है और सती सोमा देखती है, तो उसे फूलों की माला नजर आती है। ____ यह बड़ा ही महत्त्वपूर्ण आश्चर्य है । जो वहाँ, उस समय मौजूद रहे होंगे, और जिन्होंने अपनी आँखों से यह आश्चर्य देखा होगा, उन्हें तो आश्चर्य हुआ ही होगा। किन्तु हम आज उस घटना का वर्णन पढ़ते हैं, तो भी चकित रह जाते हैं और खोजने पर भी समाधान नहीं पाते । आखिर इसी नतीजे पर पहुंचते हैं कि जिनके विचारों में साँप था, उनके लिए वह सांप ही था और जिसके विचार में फूल-माला थी, उसके लिए वह फूल माला ही थी । आखिर मनुष्य मन ही तो है, विचार ही तो है । जैसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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