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________________ विराट-भावना १०६ वालों के हृदय को किस प्रकार प्रभावित कर सकेगी? आपके धर्म की चमक आपके ध्यान में कैसे आएगी ? अतएव यदि आपको जनता का नैतिक-स्तर ऊंचा उठाना है, और जनता को ठीक शिक्षा देनी है, तो साधु-समाज को ऊँचा उठाने की कोशिश करनी होगी, जिससे कि उनका मापदण्ड छोटा न रह जाए। यदि साधुगण उच्च शिक्षा से विभूषित न हुए और उनकी योग्यता, आज की तरह ही क्ष द्र बनी रही, तो भविष्य में ऐसा समय आने वाला है, कि सम्भवतः साधु-संस्था को खत्म होना पड़े या अच्छे साधुओं की संख्या नगण्य रह जाए । जनता के मन में अब साधुओं के लिए जगह नहीं है । हाँ, कुछ साधु हैं, जिनके लिए जगह है, किन्तु दूसरों के लिए नहीं है । अध्यात्मिक विकास के साथ जनता के मानस में स्थान पाने के लिए भी साधुओं के ज्ञान और चरित्र का स्तर ऊंचा होना चाहिए। - साधुओं के सामने एक बृहत् कल्पना आनी चाहिए, ताकि वह अपने अध्ययन, चिन्तन और विचारों में गहरे पैठ सकें। और इस रूप में यदि गहाराई में पैठेंगे, तो ब्रह्मचर्य देवता के दर्शन दूर नहीं हैं । कदम-कदम पर ब्रह्मचर्य उनके साथ में चलेगा और वे जहाँ कहीं भी पहुंचेंगे, वहाँ अपने धर्म और समाज को चमका सकेंगे। आप गृहस्थों के लिए भी यही बात है। आप अपने बच्चों को बनाना चाहते हैं, किन्तु उनको बनाने के लिए आप करते क्या हैं ? आज आप उन्हें अक्षर-ज्ञान के लिए केवल चार जमात पढ़ा रहे हैं और दूकान की गद्दी पर बैठा रहे हैं, और सिखा रहे हैं, कि लूटो दुनिया को । आप दस के सौ लिखने की कला सिखा रहे हैं। लेकिन अस्तेयव्रत का निरूपण करते समय मैं कह चुका हूँ, कि व्यापारी का यह कर्तव्य नहीं है । आगम, वेद, पुराण, और उपनिषद् के काल में व्यापारी देश के उत्तरदायित्व को शान के साथ वहन करते थे। उस समय राजा तो राजा ही रहा । जब देश के ऊपर शत्रुओं का आक्रमण हुआ, तो उसने दो-चार तलवार के हाथ चला दिए और बस, किन्तु देश में निर्माण के भव्य प्रासाद खड़े करने वाले और जनहित के लिए लक्ष्मी के बड़े-बड़े भण्डार भरने वाले कौन थे ? वे राजा नहीं, व्यापारी ही थे। व्यापारियों ने ही देश को समृद्ध बनाया है, धन-धान्य से परिपूर्ण बनाया है और देश के गौरव को चार चाँद लगाए हैं । देश में जो श्री समृद्धि आई, वह व्यापारियों की बदौलत ही आई । उनके जहाजों को पताकाएँ फिलीपाइन, जावा, सुमात्रा, चीन, जापान तक फहराती रही हैं । उन्होंने अपने देश की जरूरतों को पूरा किया, साथ ही अन्य देशों की जरूरतों को भी पूरा किया। सच्चा व्यापारी वही है, जो अपने आपको भी ऊँचा बना ले और दूसरों की झोंपड़ी को भी महल बना दे । जब तक इस दृष्टि से व्यापारी चला, तब तक वह बड़ा बना रहा । व्यापार के क्षेत्र में भी चरित्र-बल की और वासना-विजय की बड़ी आवश्यकता है । हम प्राचीन कथाओं में पढ़ते हैं कि तरुण की भरी जवानी है, अभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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