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ब्रह्मचर्य वर्शन दी। वह तो और अधिक उनकी सेवा में रत रहने लगी। जब दिन छिपने को होता तब अन्धकार को दूर करने के लिए वह दबे पैरों वहाँ आकर दीपक जला जाती।
मिश्रजी तन्मयभाव से लिखने में संग्लन रहते और उन्हें पता ही न चलता कि दीपक कब और कौन जला गया है ? इस प्रकार बारह वर्ष निकल गए और यौवन की वह तूफानी हवा, जो ऐसे समय में दो युवक-हृदयों में बरबस बहने लगती है, वहां न बह सकी । जब टीका की समाप्ति का समय आया, तब एक दिन ऐसा हुआ कि दीपक जल्दी ही बुझ गया । जब पत्नी उसे फिर जलाने आई, तो वाचस्पति मिश्र ने प्रकाश में देखा कि वह एक तपस्विनी के रूप में रह रही है और उसने अपने जीवन को दूसरे ही रूप में ढाल दिया है । शरीर कृश है, अलंकारहीन है, वस्त्र भी साधारण हैं । आखिर उन्होंने पूछा-"तुमने ऐसा जीवन क्यों बना रक्खा है ?"
पत्नी ने प्रसन्न भाव से कहा-"आपके पवित्र उद्देश्य के लिए मैं बारह वर्ष से यह कर रही हूँ।"
मिश्रजी चकित रह गए और गद्गद स्वर में बोले-“सचमुच तुम्हारी साधना के बल से ही मैं इस महान् ग्रन्थ को पूरा कर सका हूँ। यदि हम संसार की वासनाओं में फंसे होते, तो कुछ भी नहीं कर सकते थे। किन्तु अब वह चीज लिखी है, कि जो तुमको और मुझको अमर कर देगी। मैं इस टीका का नाम तुम्हारे नाम पर 'भामती' रखता हूँ।"
वाचस्पति ने ब्रह्मसूत्रशांकर भाष्य पर जो 'भामती' टीका लिखी है, वह आज भी विद्वानों के लिए एक गम्भीर चिन्तन का विषय है । अच्छा से अच्छा विद्वान भी पढ़ते समय उसमें इस प्रकार डूबा रहता है, कि वासना क्या, संसार का कोई भी प्रलोभन उसे उलझन में नहीं डाल सकता। तन्मयता बराबर बनी रहती है, मन इधर-उधर नहीं भटकता।
____ आशय यह है, कि वाचस्पति के सामने यदि वह ऊँची दार्शनिक भावना न होती, और ऊँचा संकल्प न होता, तो क्या आप समझते हैं कि वह इतनी महान् कृति जगत को भेंट कर सकता था ? नहीं। वह भी साधारण व्यक्तियों की तरह यौवन की आंधी में, वासना के वनमें भटक जाता और अपनी प्रतिभा को यों ही समाप्त कर देता ।
इस प्रकार जिसे ब्रह्मचर्य की साधना के प्रशस्त पथ पर प्रयाण करना है, उसे अपने समक्ष कोई विराट और महान् उद्देश्य अवश्य रख लेना चाहिए। वह आदर्श सामाजिक भी हो सकता है, राष्ट्रीय भी हो सकता है, आध्यात्मिक भी हो सकता है
और साहित्य का भी हो सकता है। जब आपके सामने उच्च आदर्श होगा, और विराट प्रेरणा होगी, तब जीवन भी विराट बनेगा और उसके फलस्वरूप वासना-विजय के लिए ब्रह्मचर्य की साधना भी सरल बन जाएगी।
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