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ब्रह्मचर्य दर्शन कारण वह संसार से सीधा स्नेह-सम्बन्ध नहीं जोड़ सका, खून बहाने-भर का ताल्लुक ही पैदा कर सका । उसके द्वारा दूसरों को आनन्द नहीं मिल सका, तो परिणामस्वरूप वह स्वयं भी आनन्द प्राप्त नहीं कर सका । किसी ने कहा है
सुख दीयां सुख होत है,
दुख दीयां दुख होत । इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए भगवती-सूत्र के पन्ने पलटने की आवश्यकता नहीं है, केवल जीवन के पन्ने पलटने की आवश्यकता है । जो दूसरों को सुख देने को चला, उसने स्वयं आनन्द प्राप्त कर लिया, किन्तु जो दूसरों को दुःख देने के लिए, उनका रक्त बहाने के लिए, चला तो वह बर्बाद हो गया। जहां दूसरों के यहां हाहाकार है और पड़ोसी के घर में आग लग रही है, वहाँ वह स्वयं कैसे अछूता रह सकता है ?
इस रूप में आज तक गलत विचारों की जो दीवारें खड़ी हैं, उनमें पहली दीवार हिंसा की है । हिंसा की दीवार उस आनन्द की प्राप्ति में बाधक है । अतएव आनन्द ने उसी को पहले-पहल तोड़ा और चैतन्य जगत के साथ प्रेम और शान्ति का सम्बन्ध जोड़ा । वह मानवता का सुखद रूप लेकर आगे बढ़ा, लोगों के आँसुओं के साथ अपने आँसू बहाने के लिए, और उनकी मुस्कराहट में अपनी मुस्कराहट जोड़ने के लिए । तभी आनन्द ने सच्चा आनन्द प्राप्त किया।
मनुष्य जब छल-कपट द्वारा दूसरों के साथ सम्बन्ध जोड़ता है, तो उसे वास्तविक आनन्द प्राप्त नहीं होता है। संसार तो प्रतिध्वनि का कुआ है। आप कुए के पास खड़े होकर, उसके अन्दर की तरफ मुंह डाल कर जैसी ध्वनि निकालेंगे, वैसी ही ध्वनि आपको सुनाई देगी। गाली देंगे तो वापिस गाली ही सुनने को मिलेगी और यदि प्रेम का संगीत छेड़ेगे, तो वही आपको भी सुनाई देगा । तो यह संसार भी ऐसा ही है। वाणी में जिन विचारों का रूप व्यक्त किया जाएगा, और जो दृष्टि बनाकर संसार के सामने खड़े हो जाओगे, उसकी प्रतिक्रिया ठीक उसी रूप में आपके सामने आएगी । जो धोखा और फरेब लेकर संसार के सामने खड़े होते हैं, उन्हें बदले में वही धोखा और फरेब मिलता है। जो संसार को आग में जलाना चाहेंगे, वे स्वयं भी उस आग की लपटों से झुलसे बिना नहीं बच सकेंगे, और जो स्नेह एवं प्रेम की निर्मल गंगा बहाएंगे, बदले में उन्हें वही स्नेह एवं प्रेम की गंगा बहती हुई मिलेगी।
एक व्यक्ति का संसार के साथ क्या सम्बन्ध है ? इस दिशा में कुछ दार्शनिकों ने बतलाया है कि उसका सम्बन्ध प्रतिबिम्ब और प्रतिबिम्बी जैसा है। एक मनुष्य का अपने आस-पास के संसार पर प्रतिबिम्ब पड़ता है, और जैसा प्रतिबिम्ब वह अपना डालता है वैसे ही स्वरूप का दर्शन उसे होता है । मान लीजिए, आपके हाथ में
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