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________________ ब्रह्मचर्य दर्शन कदम है और पाशविक जीवन में से निकल कर नीतिपूर्ण मर्यादित मानव-जीवन को अंगीकार करने का साधन है । जैनधर्म में विवाह के लिए जगह है, परन्तु पशु-पक्षियों की तरह भटकने के लिए जगह नहीं है । वेश्यागमन और पर-दार-सेवन के लिए कोई जगह नहीं है और इस रूप में जैनधर्म जन-चेतना के समक्ष एक महान् आदर्श उपस्थित करता है। ब्यावर ११-११-५० जोवन हंसी-खेल या प्रामोद-प्रमोद की वस्तु नहीं है और न जीवन भोग की ही वस्तु है । जीवन, मानवता के उच्च, उच्चतर एवं उच्चतम प्रावों को सिद्धि के लिए किया जाने वाला कठोर श्रम है। त्याग, अनवरत त्याग ही मानव जीवन का रहस्य पूर्ण अर्थ है। जीवन की अनेक-विध जटिल समस्याओं का समाधान है। मनुष्य को चिरपोषित महत्वाकांक्षाए और कल्पना तरगें कितनी ही महान एवं प्राकर्षक क्यों न हों, उनकी पूर्ति नहीं, अपितु कर्तव्य की पूर्ति ही मनुष्य के जीवन का लक्ष्य होना चाहिए । विना अपने को उच्चतर कर्तव्यरूपी लोहशृखला से प्राबद्ध किए, मनुष्य अपने जीवन के अन्तिम मोड तक विना किसी पतन के नहीं पहुंच सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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