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उत्तराध्ययन सूत्र
लोभ की पराकाष्ठा अलोभ में परिवर्तित हो गई। और वह मुख पर त्याग का तेज लिए राजा के पास पहुँचा और राजा से बोला-“आप से कुछ लेने की अब मुझे कोई चाह नहीं रही है। जो पाना था, वह मैंने पा लिया। अब मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए।"
और वह निर्ग्रन्थ मुनि बन गया।
श्रावस्ती और राजगही के बीच एक जंगल में कपिल मनि विहार कर रहे थे। उस जंगल में ५०० चोर रहते थे। उन्होंने कपिल मुनि को देखा, तो उन्हें घेर लिया। कपिल मुनि ने उन्हें गाकर समझाया-“विरक्ति, संयम और विवेक दुर्गति से बचने के मार्ग हैं। भोगों से विरक्ति तथा परिग्रह का त्याग ही बन्धन से मुक्ति दिलाता है।" चोर समझ गये और अन्त में वे सब भी मुनि बन गये।।
कपिल मुनि का चोरों को दिया हुआ वह उपदेश ही इस अध्ययन में संकलित है।
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