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छट्ठमज्झयणं : छठा अध्ययन खुड्डागनियंठिज्ज : क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय
मूल
जावन्तऽविज्जापुरिसा सव्वे ते दुक्खसंभवा। लुप्पन्ति बहुसो मूढा संसारंमि अणन्तए ।। समिक्ख पंडिए तम्हा पासजाईपहे बहू। अप्पणा सच्चमेसेज्जा मेत्तिं भूएसु कप्पए॥
हिन्दी अनुवाद जितने अविद्यावान्-अज्ञानी पुरुष हैं, वे सब दु:ख के उत्पादक हैं। वे विवेकमूढ अनन्त संसार में बार-बार लुप्त होते हैं।
इसलिए पण्डित पुरुष अनेकविध बन्धनों की एवं जातिपथों (जन्म-मरण के हेतु मोदाहि भावकों) की समीक्षा करके स्वयं सत्य की खोज करे और विश्व के सब प्राणियों के प्रति मैत्री का भाव रखे।
अपने ही कृत कर्मों से लुप्त-पीड़ित रहने वाले मेरी रक्षा करने में माता-पिता, पुत्रवधू, भाई, पत्नी तथा औरस पुत्र (आत्म-जात) समर्थ नहीं हैं।
सम्यक् द्रष्टा साधक अपनी स्वतंत्र बुद्धि से इस अर्थ की सत्यता को देखे। आसक्ति तथा स्नेह का छेदन करे। किसी के पूर्व परिचय की भी अभिलाषा न करे।
३. माया पिया ण्हुसा भाया
भज्जा पुत्ता य ओरसा। नालं ते मम ताणाय लुप्पन्तस्स सकम्मुणा॥
४.
एयमटुं संपेहाए पासे समियदंसणे। छिन्द गेहिं सिणेहं च न कंखे पुव्वसंथवं ॥
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