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१.
३.
पंचमं अज्झयणं : पांचवां अध्ययन अकाम-मरणिज्जं : अकाम-मरणीय
४.
मूल अण्णवंसि एगे तिण्णे
तत्थ एगे इमं
२. सन्तिमे य दुवे ठाणा अक्खाया मारणन्तिया ।
अकाम-मरणं
चेव
सकाम-मरणं
तहा ॥
मोहंसि
दुरुत्तरे । महापन्ने पट्टमुदाहरे ॥
बालाणं आकामं तु मरणं असई भवे ।
पण्डियाणं सकामं तु उक्कोसेण स भवे ॥
तत्थिमं पढमं ठाणं महावीरेण देसियं । काम - गिद्धे जहा बाले भिसं कूराइं कुव्वई ॥
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हिन्दी अनुवाद
संसार एक सागर की भाँति है, उसका प्रवाह विशाल है, उसे तैर कर दूसरे तट पर पहुँचना अतीव कष्टसाध्य है । फिर भी कुछ लोग उसे पार कर गये हैं। उन्हीं में से एक महाप्राज्ञ ( महावीर) ने यह स्पष्ट किया था ।
मृत्यु के दो स्थान (भेद या रूप) कहे गये हैं
अकाम मरण और सकाम मरण ।
बालजीवों के अकाम मरण बार-बार होते हैं। पण्डितों का सकाम मरण उत्कर्ष से अर्थात् केवल ज्ञानी की उत्कृष्ट भूमिका की दृष्टि से एक बार होता हैं ।
महावीर ने दो स्थानों में से प्रथम स्थान के विषय में कहा है कि कामभोग में आसक्त बाल जीव- अज्ञानी आत्मा क्रूर कर्म करता है ।
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