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असंस्कृत जीवन धन से बचाया नहीं जा सकेगा। परिजन संकट के समय साथ छोड़ देंगे।
टूटते हुए जीवन को बचाने वाला या टूट जाने पर पुन: उसे जोड़ने वाला कोई भी तो इस संसार में नहीं है। मृत्यु के द्वार पर पहुँचने के बाद अशरण जीव को कोई भी शरण नहीं है। जीवन की सुरक्षा के लिए संगृहीत किए गए एक से एक सशक्त साधन अन्त में दिखाई तक नहीं देते हैं। विपदा आने पर परिजन साथ छोड़ देते हैं। मृत्यु से बचने के लिए जिस धन को सर्वोत्तम साधन माना जाता है, वही धन कभी मृत्यु का ही कारण बन जाता है। व्यक्ति जीवन के इस सत्य को ध्यान में रखे। धन, परिजन आदि सुरक्षा के तमाम साधनों के आवरणों में छुपी हुई असुरक्षा और अशुभ कर्म-फल-भोग को भूलें नहीं। एक दिन आता है, जब इन साधनों की अन्तिम निष्फलता प्रगट होगी। अत: पहले से ही व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए।
धन एवं परिजन आदि के प्रलोभन व्यक्ति को सन्मार्ग से बहका देते हैं। साधन, एक साधन है। उसकी एक बहुत छोटी सी क्षुद्र सीमा है। वहीं तक उसका अर्थ है। इससे आगे उसको महत्त्व देना एक भ्रान्ति है, और कुछ नहीं। भ्रान्ति मानव को दिग्भ्रान्त कर देती है। उसका हिताहित-विवेक नष्ट हो जाता है। यही बात धर्म और दर्शन की भ्रान्ति के सम्बन्ध में है। धर्म और दर्शन की भ्रान्त धारणाएँ भी व्यक्ति को बहका देती हैं। वे सबसे अधिक खतरनाक हैं। भ्रान्त धारणाओं की प्ररूपणा करने वाले लोग भगवान् महावीर की दृष्टि में अधार्मिक हैं, असंस्कारी हैं।
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