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उत्तराध्ययन सूत्र
४४. 'नत्थि नूणं परे लोए
इड्डी वावि तवस्सिणो। अदुवा वंचिओ मि' त्ति
इइ भिक्खू न चिन्तए । ४५. 'अभू जिणा अस्थि जिणा
अदुवावि भविस्सई। मुसं ते एवमाहंसु' इइ भिक्खू न चिन्तए॥
२२-दर्शन-परीषह
"निश्चय ही परलोक नहीं है, तपस्वी की ऋद्धि भी नहीं है, मैं तो धर्म के नाम पर ठगा गया हूँ"-भिक्षु ऐसा चिन्तन न करे। ___“पूर्व काल में जिन हुए थे, वर्तमान में जिन हैं और भविष्य में जिन होंगे'-ऐसा जो कहते हैं, वे झूठ बोलते हैं"-भिक्षु ऐसा चिन्तन न करे।
कश्यप-गोत्रीय भगवान् महावीर ने इन सभी परीषहों का प्ररूपण किया है। इन्हें जानकर कहीं भी किसी भी परीषह से स्पृष्ट-आक्रान्त होने पर भिक्षु इनसे पराजित न हो।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
४६. एए परीसहा सवे
कासवेण पवेइया जे भिक्खू न विहन्नेज्जा पुट्ठो केणइ कण्हुई।
-त्ति बेमि
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