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३०-अध्ययन
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अध्ययन ३० गाथा ७–मुक्ति की प्राप्ति में बहिरंग निमित्त हैं, शरीर आदि बाह्य द्रव्य पर आधारित है, और सर्वसाधारण लोगों द्वारा भी तप रूप में अभिप्रेत है, अत: अनशन आदि बाह्य तप है । यह अन्तरंग तप के माध्यम से ही मुक्ति का कारण है, स्वयं साक्षात् कारण नहीं। इसके विपरीत जो शरीर आदि बाह्य साधनों पर आधारित नहीं है, अन्त:करण से स्वयं स्फूर्त है, जो विशिष्ट विवेकी साधकों द्वारा ही समाचरित है, वह अन्तरंग तप है।
गाथा १०-११-इत्वरिक अनशन तप देश, काल, परिस्थिति आदि को ध्यान में रखते हए अपनी शक्ति के अनुसार एक अमुक समयविशेष की सीमा बाँधकर किया जाता है । भगवान् महावीर के शासन में दो घड़ी से लेकर उत्कृष्ट छह मास तक की सीमा है । संक्षेप में इसके छह भेद होते हैं।
(१) श्रेणि तप-उपवास से लेकर छह मास तक क्रमपूर्वक जो तप किया जाता है, वह श्रेणि तप है। इसकी अनेक श्रेणियाँ हैं। जैसे उपवास, बेला-यह दो पदों का श्रेणि तप है । उपवास, बेला, तेला, चौला-यह चार पदों का श्रेणितप है।
(२) प्रतरतफ-एक श्रेणि तप को जितने क्रम अर्थात् प्रकारों से किया जा सकता है, उन सब क्रमों को मिलाने से प्रतर तप होता है । उदाहरणस्वरूप १. २. ३. ४. संख्यक उपवासों से चार प्रकार बनते हैं। स्थापना इस प्रकार है
क्रम
उपवास | बेला | तेला | चौला बेला तेला | चौला उपवास तेला | चौला | उपवास | बेला
| चौला उपवास | बेला | तेला यह प्रतर तप है। इसमें कल पदों की संख्या १६ है। इस तरह यह तप श्रेणि-पदों को श्रेणि पदों से गुणा करने से बनता है। चार को चार से गुणित करने पर १६ की संख्या उपलब्ध होती है। यह आयाम और विस्तार दोनों में समान
(३) घनतप–जितने पदों की श्रेणि हो, प्रतर तप को उतने पदों से गुणित करने पर घनतप बनता है। जैसे कि ऊपर में चार पदों की श्रेणि है, अत: उपर्युक्त
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