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१८-अध्ययन
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अध्ययन १८ गाथा २०-क्षत्रिय मुनि का अपना मूल नाम क्या था, और वे कहाँ के निवासी थे, ऐसा कुछ नहीं बताया गया है।
गाथा २३–प्राचीन युग में दार्शनिक विचारधारा के चार वाद थे'क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद और विनयवाद ।'
(१) क्रियावादी आत्मा के अस्तित्व को तो मानते थे, पर उसके सर्वव्यापक या अध्यापक, कर्ता या अकर्ता, मूर्त या अमूर्त आदि स्वरूप के सम्बन्ध में संशयाकुल थे।
(२) अक्रियावादी आत्मा के अस्तित्व को ही नहीं मानते थे। अत: उनके यहाँ पुण्य, पाप, लोक, परलोक, संसार और मोक्ष आदि की कोई भी मान्यता नहीं थी। यह प्राचीन युग की नास्तिक परम्परा है।
(३) अज्ञानवादी अज्ञान से ही सिद्धि मानते थे। उनके मत में ज्ञान ही सारे पापों का मूल है। द्वन्द्व ज्ञान में से ही खड़े होते हैं। ज्ञान के सर्वथा उच्छेद में ही उनके यहाँ मुक्ति है।
(४) विनयवादी एकमात्र विनय से ही मुक्ति मानते थे। उनके विचार में देव, दानव, राजा, रंक, तपस्वी, भोगी, हाथी, घोड़ा, गाय, भैंस, श्रृगाल आदि हर किसी मानव एवं पशु-पक्षी आदि को श्रद्धापूर्वक नमस्कार करने से ही क्लेशों का नाश होता है। अहंकारमुक्ति का यह एक विचित्र धार्मिक अभियान था।
क्रियावादियों के १८०, अक्रियावादियों के ८४, अज्ञानवादियों के ६८ और विनयवादियों के ३२ भेद थे। इस प्रकार कुल मिला कर ३६३ पाषण्ड थे।
गाथा २८–महाप्राण, ब्रह्मलोक नामक पाँचवें देवलोक का एक विमान
क्षत्रिय मुनि के कहे हुए 'दिव्यवर्षशतोपम' का यह अभिप्राय है कि जैसे मनुष्य यहाँ वर्तमान में लोकदृष्टि से सौ वर्ष की पूर्ण आयु भोगता है, वैसे ही मैंने वहाँ देवलोक में दिव्य सौ वर्ष की आयु का भोग किया है। इसकी वैदिक पुराणों के ब्रह्मा के दीर्घकालिक वर्ष आदि से तुलना की जा सकती है।
‘पाली' से पल्योपम और 'महापाली' से सागरोपम अर्थ अभीष्ट है । 'पाली' साधारण जलाशय से उपमित है, और 'महापाली' सागर से।
एक योजन के ऊँचे और विस्तृत पल्य (बोरा आदि या कूप) को सात दिन के जन्म लिए बालक के केशारों से ठसाठस भर दिया जाए, अनन्तर सौ-सौ वर्ष
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