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________________ ४३६ उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पण गाथा १४-शान्त्याचार्य की दृष्टि में भयभैरव का अर्थ 'अत्यन्त भय उत्पन्न करने वाला' है । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र की टीका में आकस्मिक भय को 'भय' और सिंह आदि से उत्पन्न होने वाले भय को 'भैरव' कहा है। गाथा १५-बृहद्वृत्ति में 'खेद' का अर्थ संयम है, और 'खेदानुगता' का अर्थ संयमी है। दूसरों का अपवाद न करने वाला अथवा किसी को बाधा न पहुँचाने वाला 'अविहेटक' होता है। अध्ययन १६ सूत्र ३–ब्रह्मचर्य के लाभ में सन्देह होना 'शंका' है। अब्रह्मचर्य—मैथुन की इच्छा ‘कांक्षा' है। अभिलाक्षा की तीव्रता होने पर चित्तविप्लव का होना, विचिकित्सा है। विचिकित्सा के तीव्र होने पर चारित्र का विनाश होना, 'भेद' है। सूत्र ९–प्रणीत वह पुष्टिकारक भोजन है, जिससे घृत तथा तेल आदि की बूंदें टपकती हों। 'प्रणीतं-गलत्स्नेहं तैलघृतादिभि:'-उत्तराध्ययन चूर्णि । अध्ययन १७ गाथा १५–विकृति और रस दोनों समानार्थक हैं। विकृति के नौ प्रकार हैं—दूध, दही, नवनीत, घृत, तैल, गुड़, मधु, मद्य और मांस। गाथा १७–पाषण्ड का अर्थ व्रत है। जो व्रतधारी है, वह पाषण्डी है। परपाषण्ड से यहाँ अभिप्राय: सौगत आदि अन्य मतों से है। गाणंगणिक का अर्थ है-जल्दी-जल्दी गण बदलने वाला। जैन परम्परा की संघव्यवस्था है, कि भिक्षु जिस गण (समुदाय) में दीक्षित हो, उसी में यावज्जीवन रहे । अध्ययन आदि विशिष्ट प्रयोजन से यदि गण बदले तो गुरु की आज्ञा से अपने साधर्मिक गणों में जा सकता है। परन्तु दूसरे गण में जाकर भी कम से कम छह महीने तक तो गण का पुन: परिवर्तन नहीं किया जा सकता। अत: जो मुनि बिना कारणविशेष के छह मास के भीतर ही गण परिवर्तन करता है, वह गाणंगणिक पापश्रमण है। 'गणाद् गणं षण्मासाभ्यन्तर एव संक्रामतीति गाणंगणिक इत्यागमिकी परिभाषा'–बृहद्वृत्ति । गाथा १९–सामुदानिक भिक्षा का अर्थ शान्त्याचार्य ने बृहवृत्ति में दो प्रकार से किया है—(१) अनेक घरों ले लाई हई भिक्षा, और (२) अज्ञात उञ्छ-अर्थात् अपरिचित घरों से थोड़ी-थोड़ी लाई हुई भिक्षा । 'बहुगृहसम्बन्धितं भिक्षासमूहम्- अज्ञातोञ्छमिति यावत्।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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