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९ - अध्ययन
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अशन, पान आदि आहार का त्याग किए बिना भी पोषध किया जाता था । स्थानांग सूत्र (४ | ३ | ३१४) के अनुसार पोषध की आराधना अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावस्या – इन पर्व दिनों में की जाती है । स्थानांग (३ । १ । १५० तथा ४। ३ । ३१४) में ‘पोषधोपवास' और 'परिपूर्ण पोषध' – ये दो शब्द मिलते हैं पोषध (पर्व दिन) में जो उपवास किया जाता है, वह 'पोषधोपवास' है । तथा पर्व तिथियों में पूरे दिन और रात तक आहार, शरीर संस्कार आदि का परित्याग कर ब्रह्मचर्यपूर्वक जो धर्माराधना की जाती है वह 'परिपूर्ण पोषध है ।'
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दिगम्बर परम्परा के वसुनन्दि श्रावकाचार (२८० - २९४ ) में उत्तम, मध्यम और जघन्य के भेद से प्रोषध के तीन रूप बताए हैं । उत्तम प्रोषध में चतुर्विध आहार का तथा मध्य में जल को छोड़कर शेष त्रिविधि आहार का त्याग होता है । आयंबिल (आचाम्ल), निर्विकृति, एक स्थान और एक भक्त को जघन्य प्रोषध कहते हैं ।
बौद्ध परम्परा में अंगुत्तर निकाय ( भा० १, पृ० २१२) के अनुसार प्रत्येक पक्ष की अष्टमी, चतुर्दशी और पंचदशी (पूर्णिमा और अमावस्या) को उपोसथ होता है । उपोसथ में प्राणियों की हिंसा, चोरी, मैथुन और मृषावाद का त्याग होता है 1 रात्रि में भोजन नहीं किया जाता। दिन में भी विकाल में एक बार ही भोजन होता है । माला, गन्ध आदि का उपयोग नहीं किया जाता है।
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'उपोसथ' में 'उ' कार का लोप होने के बाद 'थ' को 'ह' हो जाने पर उच्चारणविज्ञान के अनुसार सहज ही प्राकृत का 'पोसहरूप' निष्पन्न हो सकता है ।
प्रस्तुत में ब्राह्मणरूपधारी इन्द्र नमिराजर्षि से 'पोषध' करने की बात कहता है । अतः स्पष्ट होता है कि वह जैन परम्परा के 'पोषध' का प्रयोग नहीं बता रहा है । अवश्य ही वैदिक परम्परा में भी किसी न किसी रूप में 'पोषध' का प्रयोग उस युग में होता होगा। उत्तर में नमिराजर्षि ने इन्द्र - निर्दिष्ट उक्त तप को बालतप कहकर जो निषेध किया है, वह भी उक्त 'पोषध' को जैन परम्परा का सिद्ध नहीं करता है ।
गाथा ४४ - -'कुसग्गेणं तु भुंजए' में आए कुशाग्र के दो अर्थ होते हैं । एक तो वही प्रसिद्ध अर्थ है कि जितना कुश के अग्रभाग पर टिके, उतना खाना, अधिक नहीं । सुखबोधा वृत्ति में दूसरा अर्थ है - कुश के अग्रभाग से ही खाना, अंगुली आदि से उठाकर नहीं— 'कुशाग्रेणैव दर्भाग्रेणैव भुंक्ते, न तु करांगुल्यादिभिः ।'
गाथा ६०-- सूत्रकृतांग चूर्णि ( पृ० ३६० ) के अनुसार तीन शिखरों वाला मुकुट और चौरासी शिखरों वाला तिरीड अर्थात् किरीट होता है। वैसे सामान्यतया मुकुट और किरीट - दोनों पर्यायवाची माने जाते हैं ।
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