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उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पण
गाथा १५ - स्थानांग सूत्र में बोधि के तीन प्रकार बताए हैं- ज्ञानबोधि, दर्शनबोधि और चारित्र बोधि ।
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अध्ययन ९
गाथा ७ – साधारण मकान गृह होता है, वह सात या उससे अधिक मंजिलों का भवन प्रासाद कहलाता है । अथवा देवमन्दिर और राजभवन प्रासाद कहलाते हैं- " प्रासादेषु - सप्तभूम्यादिषु गृहेषु सामान्यवेश्मसु । यद्वा प्रासादो देवतानरेन्द्राणमिति वचनाद् प्रासादेषु देवतानरेन्द्रसम्बन्धिष्वास्पदेषु, गृहेषु तदितरेषु ”बृहद्वृत्ति ।
गाथा ८– साध्य के अभाव में जिसका अभाव निश्चित हो, उसे हेतु कहते हैं। उसका रूपाकार इस प्रकार है । जैसे कि इन्द्र कहता है— तुम्हारा अभिनिष्क्रमण अनुचित है, क्योंकि तुम्हारे अभिनिष्क्रमण के कारण समूचे नगर में हृदयद्रावक कोलाहल हो रहा है। पहला अंश प्रतिज्ञा वचन है, अत: वह पक्ष है 1 और दूसरा, क्योंकि वाला वचन हेतु है, जो अभिनिष्क्रमण के अनौचित्य को सिद्ध
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जिसके अभाव में कार्य की उत्पत्ति कथमपि सम्भव न हो, अर्थात् जो नियत रूप से कार्य का पूर्ववर्ती हो, उसे कारण कहते हैं । जैसे धूमरूप कार्य का अग्नि पूर्ववर्ती कारण है । प्रस्तुत में इन्द्र ने जो यह कहा है कि 'यदि तुम अभिनिष्क्रमण नहीं करते, तो इतना हृदयद्रावक कोलाहल नहीं होता। इसमें कोलाहल कार्य है, अभिनिष्क्रमण उसका कारण है – “अनुचितमिदं भवतोऽभिनिष्क्रमणमिति प्रतिज्ञा, आक्रन्दादिदारुणशब्दहेतुत्वादिति हेतुः । आक्रन्दादिदारुणशब्दहेतुत्वं भवदभिनिष्क्रमणानुचितत्वं विनाऽनुपपन्नमित्येतावन्मात्रं कारणम्" - सुखबोधावृत्ति ।
गाथा २४ -- 'वर्धमान' वह घर होता है, जिसमें दक्षिण की ओर द्वार न हो । वर्धमान गृह धनप्रद एवं धनवर्द्धक भी माना जाता था । 'दक्षिणद्वाररहितं वर्धमानं धनप्रदम्' - वाल्मीक रामायण ५। ८
गाथा ४२ – मूल 'पोसह' शब्द के श्वेताम्बर साहित्य में 'पोषध' तथा 'प्रोषध' दोनों संस्कृत रूपान्तर हैं । दिगम्बर साहित्य में इसे 'प्रोषध' और बौद्ध साहित्य में ‘उपोसथ' कहते हैं । बृहद्वृत्तिकार शान्त्याचार्य ने पोषध की व्युत्पत्ति की है- ' धर्म के पोष अर्थात् पुष्टि को धारण करने वाला व्रतविशेष' - 'पोषं धर्मपुष्टि विधत्ते ।'
यह श्रावक का ग्यारहवाँ व्रत है । इसमें भगवतीसूत्र (१२ । १) के अनुसार अशनादि चार आहार का, तथा मणि, सुवर्ण, माला, उबटन, विलेपन और शस्त्र प्रयोग का प्रत्याख्यान किया जाता है । ब्रह्मचर्य का पालन भी किया जाता है 1 भगवती (१२ । १) के अनुसार शंखश्रावक के वर्णन पर से ज्ञात होता है कि
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