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उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पण
बिना गर्भ के अशुचि स्थानों में यों ही जन्म लेने वाले द्वीन्द्रिय आदि जीव सम्मूच्र्छनज हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति के जीव भी शास्त्रदृष्टि से सम्मळुनज ही माने जाते हैं। नारक और देव बिना गर्भ के अन्तर्मुहूर्त मात्र में पूर्ण शरीर पा लेते हैं, अत: उनका जन्म औपपातिक है। प्रस्तुत में
औपपातिक जन्म का उल्लेख इसलिए है कि नारक जीव गर्भ काल के अभाव में तत्क्षण उत्पन्न होते ही नरक की भयंकर वेदनाओं को भोगने लगते हैं। . गाथा १६–'कलि' और 'कृत' जुए के दो प्रकार हैं । कलि हार का दाव है, और कृत जीत का। सूत्र कृतांग के अनुसार कलि—एकक, द्वापर-द्विक, त्रैतात्रिक और कृत-चतुष्क के रूप में जुआ चार अक्षों से खेला जाता था। चारों पासे सीधे या ओंधे एक से पड़ते हैं, वह कृत है। यह जीत का दाव है। एक, दो या तीन पड़ते हैं, सब नहीं, उन्हें क्रमश: कलि, द्वापर और त्रैता कहा जाता है। छान्दोग्य उपनिषद् (४ । १। ४) में 'कृत' जीत का दाव है। महाभारत (सभापर्व-५२ । १३) में सुप्रसिद्ध द्यूतविशेषज्ञ शकुनि को 'कृतहस्त' कहा है, जो सदैव कृत अर्थात् जीव का दाव खेलने में सिद्धहस्त था।
गाथा १८-चर्णिकार ने 'वसीमओ' के 'वसीम' शब्द के तीन अर्थ किए हैं-इन्द्रियों को वश में रखने वाला, साधुगुणों में बसने वाला और संविग्न। 'वुसीम' का संस्कृत रूप वृषीमत् भी होता है, जिसका अर्थ होता है-वृषीवाला। अभिधान-चिन्तामणि (३ । ४८०) के अनुसार वृषी का अर्थ है—'मुनि का कुश आदि से निर्मित आसनविशेष । सूत्रकृतांग (२ । २ । ३२) में श्रमणों के दण्ड, छत्र, भाण्ड तथा यष्टिका आदि उपकरणों में एक 'भिसिग' उपकरण भी उल्लिखित है। संभव है, वह वृषी-वृषिक ही हो।
अध्ययन ६ गाथा ७-'दोगुंछी' का चूर्णिकार ने 'जुगुप्सी' अर्थ किया है। उनके मतानुसार जुगुप्सा का अर्थ है-संयम। असंयम से जुगुप्सा अर्थात् विरक्ति ही संयम है। -'दुगुंछा-संजमो। किं दुगुंछति? असंजमं।'
गाथा १७-'नायपुत्ते' का अर्थ 'ज्ञातपुत्र' है, जो भगवान् महावीर का ही एक नाम है। चूर्णि में इसका स्पष्टार्थ है-'ज्ञातकुल में प्रसूत सिद्धार्थ क्षत्रिय का पुत्र ।' 'णातकुलप्पसूते सिद्धत्थखत्तियपुत्ते।' यद्यपि आगम साहित्य में भगवान् महावीर का वंश इक्ष्वाकु और गोत्र काश्यप बताया है। वंश के रूप में 'ज्ञात' का उल्लेख नहीं है। अस्तु, लगता है, इक्ष्वाकु वंशी काश्यपगोत्रीय क्षत्रियों का ही ज्ञात भी एक अवान्तर शाखाविशेष हो । तत्कालीन वज्जी देश के शासक लिच्छवियों के नौ गण थे। 'ज्ञात' उन्हीं में का एक भेद है। यह गणराज्य से सम्बन्धित क्षत्रिय
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