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________________ ४१० उत्तराध्ययन सूत्र २०५. दसहा उ भवणवासी भवनवासी देवों के दस, व्यन्तर अट्टहा वणचारिणो। देवों के आठ, ज्योतिष्क देवों के पाँच, पंचविहा जोइसिया और वैमानिक देवों के दो भेद हैं । दुविहा वेमाणिया तहा॥ २०६. असुरा नाग-सुवण्णा असुर कुमार, नागकुमार, विज्जू अग्गी य आहिया। सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, दीवोदहि-दिसा वाया द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, थणिया भवणवासिणो॥ वायुकुमार और स्तनितकुमार-ये दस भवनवासी देव हैं। २०७. पिसाय-भूय-जक्खा य पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, रक्खसा किंन्नरा य किंपुरिसा। किंपुरुष, महोरग और गन्धर्व-ये आठ महोरगा य गन्धव्वा व्यन्तर देव हैं। अट्ठविहा वाणमन्तरा ।। २०८. चन्दा सूरा नक्खत्ता चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, ग्रह और तारागहा तारागणा तहा। ये पाँच ज्योतिष्क देव हैं। ये दिसाविचारिणो चेव दिशाविचारी अर्थात् मेरुपर्वत की पंचहा जोइसालया॥ प्रदक्षिणा करते हुए भ्रमण करने वाले ज्योतिष्क हैं। २०९. वेमाणिया उ जे देवा वैमानिक देवों के दो भेद हैंदविहा ते वियाहिया। कल्पोपग-कल्प से सहित और कप्पोवगा य बोद्धव्वा कल्पातीत–इन्द्रादि के रूप में कल्प कप्पाईया तहेव य॥ अर्थात् आचार-मर्यादा व शासन व्यवस्था वाले। २१०. कप्पोवगा बारसहा कल्पोपग देव के बारह प्रकार हैंसोहम्मीसाणगा तहा। सौधर्म, ईशानक, सनत्कुमार, माहेन्द्र, सणंकुमार-माहिन्दा बह्मलोक, लान्तकबम्भलोगा य लन्तगा। २११. महासुक्का सहस्सारा महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत आणया पाणया तहा। आरण और अच्युत-ये कल्पोपग देव आरणा अच्चुया चेव इइ कप्पोवगा सुरा॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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