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________________ ४०८ उत्तराध्ययन सूत्र उनकी आयु स्थिति उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त है। उत्कृष्टत: पृथक्त्व करोड़ पूर्व अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और जघन्यत: अन्तर्मुहूर्त १९१. पलिओवमस्स भागो असंखेज्जइमो भवे। आउट्टिई खहयराणं अन्तोमुहत्तं जहन्निया॥ १९२. असंखभागो पलियस्स उक्कोसेण उ साहिओ। पुवकोडीपुहत्तेणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया॥ १९३. कायठिई खहयराणं अन्तरं तेसिमं भवे। कालं अणन्तमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं॥ १९४. एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो॥ खेचर जीवों की काय-स्थिति है। और उनका अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त काल का है । वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से उनके हजारों भेद हैं। मनुष्य त्रस मनुष्य दो प्रकार के हैं-संमूछिम और गर्भावक्रान्तिक-गर्भोत्पन्न । १९५. मणुया दुविहभेया उ ते मे कित्तयओ सुण। संमुच्छिमा य मणुया गब्भवक्कन्तिया तहा ॥ १९६. गम्भवक्कन्तिया जे उ तिविहा ते वियाहिया। अकम्म-कम्मभूमा य अन्तरद्दीवया तहा।। १९७. पन्नरस-तीसइ-विहा भेया अट्ठवीसई। संखा उ कमसो तेसिं इइ एसा वियाहिया॥ अकर्म-भूमिक, कर्म-भूमिक और अन्त द्वीपक-ये तीन भेद गर्भ से उत्पन्न मनुष्यों के हैं। कर्म-भूमिक मनुष्यों के पन्द्रह, अकर्म भूमिक मनुष्यों के तीस. और अन्तद्वीपक मनुष्यों के अट्ठाईस भेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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