SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६-जीवाजीव-विभक्ति ४०७ उनकी आयु स्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम की, और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। उत्कृष्टत: पृथक्त्व करोड़ पूर्व अधिक तीन पल्योपम और जघन्यत: अन्तर्मुहूर्त स्थलचर जीवों की कायस्थिति और उनका अन्तर जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त काल का है। वर्ण-गन्ध-रस-सपर्श और संस्थान की अपेक्षा से उनके हजारों भेद हैं। १८४. पलिओवमाउ तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया। आउट्ठिई थलयराणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया॥ १८५. पलिओवमाउ तिण्णि उ उक्कोसेण तु साहिया। पुबकोडीपुहत्तेणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया॥ १८६. कायट्टिई थलयराणं अन्तरं तेसिमं भवे। कालमणन्तमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं॥ १८७. एएसि वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो॥ १८८. चम्मे उ लोमपक्खी य तइया समुग्गपक्खिया। विययपक्खी य बोद्धव्वा पक्खिणो य चउविहा।। १८९. लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया। इत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ १९०. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥ खेचर त्रस खेचर जीव के चार प्रकार हैंचर्म-पक्षी, रोम-पक्षी, समुद्ग-पक्षी और वितत-पक्षी। वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण लोक में नहीं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से खेचर जीवों के काल-विभाग का कथन करूँगा। प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि अनन्त हैं। स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy