SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०४ उत्तराध्ययन सूत्र चौथी पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट दस सागरोपम और जघन्य सात सागरोपम है। पाँचवीं पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट सतरह सागरोपम और जघन्य दस सागरोपम है। छठी पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट बाईस सागरोपम और जघन्य सतरह सागरोपम है। १६३. दस सागरोवमा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। चउत्थीए जहन्नेणं सत्तेव उ सागरोवमा॥ १६४. सत्तरस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। पंचमाए जहन्नेणं दस चेव उ सागरोवमा ॥ १६५. बावीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। छट्ठीए जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा॥ १६६. तेत्तीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। सत्तमाए जहन्नेणं बावीसं सागरोवमा॥ १६७. जा चेव उ आउठिई नेरइयाणं वियाहिया। सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया भवे॥ १६८. अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं। विजढमि सए काए नेरइयाणं तु अन्तरं ॥ १६९. एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो॥ सातवीं पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम और जघन्य बाईस सागरोपम है। नैरयिक जीवों की जो आयु-स्थिति है, वही उनकी जघन्य और उत्कृष्ट काय-स्थिति है। नैरयिक शरीर को छोड़कर पुन: नैरयिक शरीर में उत्पन्न होने में अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से उनके हजारों भेद हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy