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उत्तराध्ययन सूत्र
चौथी पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट दस सागरोपम और जघन्य सात सागरोपम है।
पाँचवीं पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट सतरह सागरोपम और जघन्य दस सागरोपम है।
छठी पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट बाईस सागरोपम और जघन्य सतरह सागरोपम है।
१६३. दस सागरोवमा ऊ
उक्कोसेण वियाहिया। चउत्थीए जहन्नेणं
सत्तेव उ सागरोवमा॥ १६४. सत्तरस सागरा ऊ
उक्कोसेण वियाहिया। पंचमाए जहन्नेणं
दस चेव उ सागरोवमा ॥ १६५. बावीस सागरा ऊ
उक्कोसेण वियाहिया। छट्ठीए जहन्नेणं
सत्तरस सागरोवमा॥ १६६. तेत्तीस सागरा ऊ
उक्कोसेण वियाहिया। सत्तमाए जहन्नेणं
बावीसं सागरोवमा॥ १६७. जा चेव उ आउठिई
नेरइयाणं वियाहिया। सा तेसिं कायठिई
जहन्नुक्कोसिया भवे॥ १६८. अणन्तकालमुक्कोसं
अन्तोमुहत्तं जहन्नयं। विजढमि सए काए
नेरइयाणं तु अन्तरं ॥ १६९. एएसिं वण्णओ चेव
गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो॥
सातवीं पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम और जघन्य बाईस सागरोपम है।
नैरयिक जीवों की जो आयु-स्थिति है, वही उनकी जघन्य और उत्कृष्ट काय-स्थिति है।
नैरयिक शरीर को छोड़कर पुन: नैरयिक शरीर में उत्पन्न होने में अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है।
वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से उनके हजारों भेद हैं।
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