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________________ ३६-जीवाजीव-विभक्ति ४०५ पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च त्रसपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च जीव के दो भेद सम्मूछिम-तिर्यञ्च और गर्भज - तिर्यञ्च । १७०. पंचिन्दियतिरिक्खाओ दुविहा ते वियाहिया। सम्मुच्छिंमतिरिक्खाओ गब्भवक्कन्तिया तहा॥ १७१. दुविहावि ते भवे तिविहा जलयरा थलयरा तहा। खहयरा य बोद्धव्वा तेसिं भेए सुणेह मे॥ इन दोनों के पुन: जलचर, स्थलचर और खेचर-ये तीन-तीन भेद हैं। उनको तुम मुझसे सुनो। जलचर त्रस जलचर पाँच प्रकार के हैं-मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मकर और सुंसुमार । वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण लोक में नहीं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से उनके कालविभाग का कथन करूँगा। १७२. मच्छा य कच्छभा य गाहा य मगरा तहा। सुंसुमारा य बोद्धव्वा पंचहा जलयराहिया॥ १७३. लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्य वियाहिया। एतो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ १७४. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥ १७५. एगा य पुवकोडीओ उक्कोसेण वियाहिया। आउट्ठिई जलयराणं अन्तोमुहुत्तं जहनिया॥ १७६. पुव्वकोडीपुहत्तं तु उक्कोसेण वियाहिया। कायट्टिई जलयराणं अन्तोमुहुत्तं जहनिया॥ वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादिअनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि-सान्त हैं। जलचरों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट एक करोड़ पूर्व की, और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। जलचरों की काय-स्थिति उत्कृष्ट एक करोड़ पूर्व की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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