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३६ - जीवाजीव - विभक्ति
१५६. नेरइया पुढवी
रयणाभ
सक्कराभा
वालुयाभा य आहिया ||
१५७. पंक
सत्तविहा
सत्त भवे ।
धूमाभा
तमा तमतमा तहा ।
इइ नेरइया एए सत्तहा परिकित्तिया ॥
१५८. लोगस्स
-
एगदेसम्मि
ते सव्वे उ वियाहिया | एत्तो कालविभागं वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥
तु
१५९. संत पप्पऽणाईया
अपज्जवसिया विय । ठिझं पडुच्च साईया सपज्जवसिया विय ॥
१६०. सागरोवममेगं
तु
उक्कोसेण वियाहिया । पढमाए जनेणं दसवाससहस्सिया ||
१६१. तिणेव सागरा
१६२. सत्तेव
ऊ
उक्कोसेण वियाहिया । दोच्चाए ज एगं तु सागरोवमं ॥
सागरा
ऊ
उक्कोसेण वियाहिया ।
तइयाए जहनेणं तिण्णेव उ सागरोवमा ॥
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नारक त्रस -
नैरयिक जीव सात प्रकार के हैंरत्नाभा, शर्कराभा, बालुकाभा ।
पंकाभा, धूमाभा, तमः प्रभा और तमस्तमा - इस प्रकार सात पृथ्वियों में उत्पन्न होने वाले नैरयिक सात प्रकार के हैं
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वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं । इस निरूपण के बाद चार प्रकार से नैरयिक जीवों के काल-विभाग का कथन करूँगा ।
वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं । और स्थिति की अपेक्षा से सादि - सान्त हैं।
पहली पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु- स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की; और उत्कृष्ट एक सागरोपम की है ।
दूसरी पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट तीन सागरोपम की और जघन्य एक सागरोपम की है ।
तीसरी पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु स्थिति उत्कृष्ट सात सागरोपम और जघन्य तीन सागरोपम है ।
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