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________________ ४०२ उत्तराध्ययन सूत्र इत्यादि चतुरिन्द्रिय के अनेक प्रकार हैं। वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण लोक में नहीं। प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादिअनंत और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। १४९. इइ चउरिन्दिया एए ऽणेगहा एवमायओ। लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे परिकित्तिया॥ १५०. संतइं पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥ १५१. छच्चेव य मासा उ उक्कोसेण वियाहिया। चउरिन्दियआउठिई अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १५२. संखिज्जकालमक्कोसं अन्तोमुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियकायठिई तं कायं तु अमुंचओ॥ उनकी आयु-स्थिति उत्कृष्ट छह मास की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की १५३. अणन्तकालमक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं। विजढंमि सए काए अन्तरेयं वियाहियं ।। ५४. एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो॥ उनकी काय-स्थिति उत्कृष्ट संख्यातकाल की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। चतुरिन्द्रिय के शरीर को न छोड़कर निरंतर चतरिन्द्रिय के शरीर में ही पैदा होते रहना, काय-स्थिति है। चतुरिन्द्रिय शरीर को छोड़कर पुन: चतुरिन्द्रिय शरीर में उत्पन्न होने में अन्तर जघन्य अन्तर्महर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से उनके हजारों भेद हैं। १५५. पंचिन्दिया उ जे जीवा चउव्विहा ते वियाहिया। नेरइया तिरिक्खा य मणुया देवा य आहिया ॥ पंचेन्द्रिय त्रसपंचेन्द्रिय जीव के चार भेद हैंनैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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